चित्र ( tashu352.wordpress.com/2017/09) से साभार
चाचू तुम्हारे शहर की तितलियाँ शैतान हैं।
उन्हें रंग बिरंगी क्या कहूँ जो रंग की दुकान हैं।
फुले हुए मुखड़े तरोताजा गुलाबों की तरह,
खुशबू लुटा बेला सी ज्यों दिल से उड़े अरमान हैं।
वे चहकती फिर रहीं पर खोलकर हर डाल पर,
उड़ने लगीं अंजाम से बेखबर नादान हैं।
यूं तो आजादी के हैं हम भी बड़े पक्के मुरीद,
पर गुलामी ने किये हम पर बहुत अहसान हैं।
लैंप की लौ काँच के परदे में है पाती सुकून।
वक्त की लू-आंधियाँ इसके लिए हैवान हैं।
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