प्राची में सूरज मुसकाया, धरती का कण कण हर्षाया।
धूप गगरिया क्या छलकायी, जीवन का सागर लहराया।
सूरज दादा के आने से, अँधियारे ने पँख समेटे।
सारी रात राज में जिसके, बच्चे बूढ़े भयवश लेटे।
मोती जैसे दाँत दिखाकर, खिल खिल हँसे पेड़ के पल्लव।
सुन्न घोंसले संज्ञा पाकर, आसमान में करते कलरव।
मग जीवंत चले बटरोही, हाटों में हलचल हहरायी।
अरूण सूर्य की किरण श्रंखला, रज में स्वर्णप्रभा बन छाई।
निराकार भी होगा कोई, रवि साकार देवता जग में।
इसी परम की ऊर्जा रमती, थलचर, जलचर, नभचर सबमें।
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