क्या गजब ढा रहीं बाल रंगीन कर!
है बुढ़ापा जवानी चलींं छीनकर।।1।।
हमने केशों को सनई ही रहने दिया,
एक रुपया अठन्नी रखीं तीन कर।।2।।
थे धनी हम बहुत ये जगत जानता,
इस गली से गईंं तो हमें दीन कर।।3।।
जब से जालिम अधर मिर्च सूखी हुए,
तब से जेबों में यादें भरींं बीनकर।।4।।
रात तब से हिमालय हुई मित्रवर!
जबसे यौवन गया मेरी तौहीन कर।।5।।
कोई चक्कर चला कुछ दया कर प्रभू!
एक दिन जो रहा फिर वही सीन कर।।6।।
सुन्दर गीतिका।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बड़े भाई, प्रणाम।
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