रविवार, 4 दिसंबर 2016

साँप छछूंदर

17/09/2016

अभी एक घंटे पहले वह मेरे पास आया था अपने पड़ोसी विजयगोपाल जी को लेकर। विजयगोपाल जी गाँव के सम्मानित व्यक्ति हैं। पर्याप्त खेती पाती है और स्थानीय राजनीति में भी थोड़ा बहुत दखल रखते हैं। आज सुबह सुबह घर में कुछ विवाद हो गया और लडकों ने विजयगोपाल जी पर हाथ छोड़ दिया। क्या जमाना आ गया है? बच्चे जिनसे मान सम्मान में वृद्धि की अपेक्षा की जाती है वही प्रायः इज्जत तार-तार कर देते हैं। खैर वह मुझसे मशवरा करने आये थे कि क्या होना चाहिए। मेरे मन में किञ्चित आश्चर्य मिश्रित मुस्कुराहट छूटी किन्तु चेहरे पर प्रकट नहीं हुई। कारण यह है कि जो अपने कर्मों से स्वयं एक मजाक बन गया हो उसका और अधिक मजाक उड़ाना मानवीयता के विरुद्ध है। बात यह थी कि विजयगोपाल जी कल तक स्वयं ही दूसरों के मामले सुलझाया करते थे आज अपने आप उलझे हुए हैं। मुझे लग रहा था जैसे कोई MBBS नीमहकीम से इलाज कराना चाहता है।

ऐसा नहीं है कि उनके घर में पहले बाप-बेटों में वाद विवाद न हुआ हो किन्तुहाथापाई की नौबत मेरी जानकारी में पहली बार आई थी। विजयगोपाल जी के छः लड़के हैं और बिना किसी फैमिली प्लानिंग के चार लडकियाँ भी हैं। सब ईश्वर की दें है बस एक चीज का अभाव है वह है संतोष। विजयगोपाल जी व इनका परिवार संतोषी कभी नहीं रहा। जैसे उन्हें सन्तान से अघाव नहीं रहा बस छापते गये वैसे ही लोभ लालच में भी अघाव न था। विभिन्न प्रकार की सम्पत्ति किसी न किसी प्रकार से हथिया लेना उनके बाएं हाथ का खेल था। उनका पूरा परिवार इसमें उनका मददगार था। स्वयं यदि किसी से हजार दो हजार ले लिए तो देने का नाम नहीं। संख्याबल के कारण कोई जल्दी उलझता भी न था। स्वयं किसी को सौ दो सौ रूपये दे दिए और तय वक्त पर न मिले तो कर्जी का साइकिल, मोटरसाइकिल और लढ़ी-बैल इनके दरवाजे की तब तक शोभा बढ़ाता जब तक एक एक पाई वापस न मिल जाए। जो पेड़ जितना अधिक मोटा-ताजा व हरा-भरा दिखाई देता है प्रायः उसकी डालें व तने उतने ही खोखले होते हैं। ऐसा ही कुछ विजयगोपाल जी के साथ भी था।

अरे मैं तो भटक गया। बेकार में विजयगोपाल जी की विशेषताएं बघारने लगा। मेरा मकसद तो विजयगोपाल जी ने जो कहानी मुझे सुनाई बस वह कहानी आपने के सामने परोसने भर का था। तो अब मैं मूल बिंदु पर लौटता हूँ।

जब वह और विजयगोपाल जी आये उस समय मैं पूजा-पाठ में व्यस्त था। मैंने इशारे से उन दोनों को बैठने और प्रतीक्षा करने के लिए कहा। जब तक मैंने पूजा-पाठ किया तबतक घर के नौकर ने उनके चाय पानी की व्यवस्था की। जब मैं उनके सामने पहुंचा तो देखा कि विजयगोपाल जी चेहरा लटकाए हुए बैठे हैं। जब मैंने नमस्कार किया तो उसी तरह चेहरा लटकाए हुए धीरे से मेरी नमस्कार का जवाब दिया। जब मैंने बहुत आग्रह किया तो डबडबाई आँखों और बुझे हुए चेहरे से उन्होंने बताना शुरू  किया।

"अब आपसे क्या छिपाना आप तो सब जानते ही हैं। अपने दसों बच्चों को पालने के लिए कौन कौन से कर्म नहीं किये। आज वही कर्म मेरे सिर चढ़ कर नाच रहे हैं। कई साल पहले की बात है मेरा बड़ा लड़का कोई दस बरस का रहा होगा। मुझे सूचना मिली कि मेरी चाची जो कि विधवा और निःसन्तान थीं और अपने मायके में रह रहीं थीं। काफी धनाढ्य महिला थीं। उन्हें कोई 50 बीघा जमीन अपने मायके में मिली थी। उनका कोई भाई न होने, विधवा व निःसन्तान होने तथा ससुरालियों द्वारा प्रेम न किये जाने के कारण प्रायः हमेशा वहीं रहीं थीं अपनी समस्त भूमि का बैनामा अपने चचेरे भाइयों व भतीजों को करने जा रहीं थीं। ससुराल में उनका जो हक था उस पर हम लोग पहले ही कब्जा जमा चुके थे। अब यह सहन नहीं होता था कि करोड़ों की जायदाद वह किसी और के नाम कर दें जो उनके मरने के बाद मेरी होने वाली थी। अतः एक शाम मैं उनके मायके पहुंचा। मेरी चाची एक अलग घर में रहती थीं। घरेलू कार्य प्रायः नौकर चाकर देखा करते थे। मैं वहाँ ऐसे समय पर पहुँचा जब नौकर लोग घर जा चुके थे और लोग सोने की तैयारी में थे। अतः मुझे चाची के घर आते जाते किसी ने नहीं देखा। मैंने पहले तो चाची को समझाने का प्रयासकिया किन्तु जब वह नहीं मानी तो मैंने जो किया उसका राजदार सिर्फ मेरा बड़ा लड़का है। यह  मेरी गलती रही कि मैंने अपने बड़े लड़के को उसके जिद पकड़ लेने के कारण साथ ले लिया। चाची के मायके वाले काफी दिनों तक यह सोंचते रहे  कि चाची गाँव किनारे बह रही नदी में रात बिरात पानी लेने गईं होंगी और बुढ़ापे के कारण फिसल गयीं। उनकी लाश पांचवे दिन गाँव से कोई 6 किलोमीटर दूर नदी के किनारे काफी सड़ी गली अवस्था में प्राप्त हुई।

बाद में चाची की जमीन मेरे नाम हो गयी। अब मेरे पास उस जमीन को मिलाकर 90 बीघा जमीन है। जिस पर छहों भाइयों का हक है। लेकिन बड़ा लड़का मेरी मजबूरी का नाजायज फायदा उठाना चाहता है। वह कहता है कुछ भी हो उसे उस 50 बीघा में आधी जमीन चाहिए और शेष में छठवाँ हिस्सा। नहीं तो वह पुलिस में कम्प्लेंट करेगा और चाची की हत्या के जुर्म में मुझे जेल पहुंचा देगा। मैं अब इस बुढ़ापे में जेल नहीं जाना चाहता। मेरी गति तो साँप छछूंदर की हो गयी है। अगर लड़के की बात मानूँगा तो घर में खून खराबा हो जायेगा और नहीं मानूँगा तो भी भगवान ही जाने क्या होगा। मुझे आपसे बड़ी उम्मीद है। वह लड़का आपके पास आता जाता है। आपका सम्मान करता है। बहुत मुमकिन है कि वह आपकी बात मान ले और मेरा कल्याण हो जाये। वरना मेरा बुढ़ापा तो नर्क हो ही गया।"

मैंने उनकी हाँ में हाँ मिलाई और उनसे कहा कि ठीक है मैं आपके लड़के को समझाने का प्रयास करूंगा।  उनके जाने के बाद मैंने घड़ी पर निगाह डाली और नोट किया कि जब चक्र पूरा होता है तो घड़ी की सुइयाँ घूम कर फिर वहीं पर आ जाती हैं यद्यपि तमाम चीजें बदल चुकी होती हैं।

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