रविवार, 4 दिसंबर 2016

सनक

04/12/2016

पौधे खड़े हैं अक्ल में उन्हें पानी पिला दे।

रूमानियत  के फूल भी दो चार खिला दे।।

हर एक नशे की होती है अपनी ही एक मियाद।

कोई किसी को झोंक में कितनी भी पिला दे।

बेचारगी की हद कोई उस शख्स से पूँछो।

मरते हुए दुश्मन को कोई जिसके जिला दे।।

सोसाइटी की बात को सुनना न गँवारा।

इसकी चले तो हीरे को मिट्टी में मिला दे।।

मूरत बना के पूजती औ' तोड़ भी देती।

जनता की सनक रेत से भी तेल दिला दे।।

भूली हुई जो वक्त पर आये न जुबाँ पे।

भगवान ऐसी याद की बुनियाद हिला दे।।

जो आ गयी वो दिल में दबाकर न रखूँगा।

शिकवा करे कोई भले औ' कुछ भी सिला दे।।

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