बारि बारि दिया हम, राखे थे मुंडेर पर,
करिहैं जो उजाला तौ, जीव हित होई।
किन्तु जो पतिंगा रहे, धाइ धाइ ज्वाला धंसे,
देखि पंख मूड़ जरे, गयो चित रोई।
पग पग पुंगा लोग, कौशल का ठेका लिए,
विद्वता के बीज रहे, पुलकित बोई।
हमहूँ प्रतिज्ञा करी, तन जान रहे धरी,
छोड़िबो न धर्म निज, करै कित कोई।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें