सोमवार, 16 मई 2022

स्पीड और सुरक्षा

कितना अच्छा था कि अयारी से गुजरने वाला शाहाबाद पिहानी मार्ग ऊबड़ खाबड़ था। आप हिचकोले खाते हुए चलते थे और कहीं देर से पहुँचने पर हाथ मलते थे। धन्यवाद विधायिका जी का जिनके प्रयासों से फर्राटा भरने वाली सड़क बनी। साथ ही समस्या खड़ी हो गई स्पीड की और सुरक्षा की।
पिछले दो दिनों में सड़क पर लगातार अलग अलग स्थानों पर तीन एक्सीडेंट दो मौतें और कम से कम चार घायल। 
हमारी बहुत बड़ी त्रुटि है कि विकसित होती तकनीक के साथ हम विकसित नहीं हुए। हमें यह तो पता है कि हमारी गाड़ी का एवरेज और अधिकतम स्पीड क्या है लेकिन हमें यह पता नहीं कि कितनी स्पीड पर हमारे लिए खतरा कितना ज्यादा है और वाहन रुकने में कितना समय और शक्ति लेता है। बन्धु सामान्य भौतिक विज्ञान का विद्यार्थी जानता है कि 40 किमी प्रति घंटा की चाल का तात्पर्य 11 मीटर प्रति सेकंड होता है और 60 किमी प्रति घंटे की चाल का तात्पर्य लगभग 17 मीटर प्रति सेकंड होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि कोई ऑब्जेक्ट आपको सड़क पर दिखे और आप एक सेकेंड के अन्दर त्वरित क्रिया करें तब भी आप ऑब्जेक्ट को हिट कर ही जाएंगे यदि ऑब्जेक्ट आपसे लगभग 15 से 20 मीटर दूर है। स्पष्ट रूप से आप खतरे में हैं। इस स्पीड पर भी।
दूसरा गति दुगुना बढ़ने से खतरा दुगुना नहीं होता बल्कि चौगुना होता है। E=mv^2 आइंस्टीन के द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण के अनुसार ऊर्जा द्रव्यमान के अनुक्रमानुपाती और वेग के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है। उस हिसाब सवारी डबल तो खतरा डबल लेकिन स्पीड डबल तो खतरा चार गुना ज्यादा। 
इस खतरे को कम कर सकते हैं हेलमेट लगा के सरकार लगातार कह रही है हेलमेट लगाओ किन्तु आप आजाद हैं। तो नहीं लगाते। आप लगा भी लें तो पैदल वाला क्या करे। वह तो निकल लिया आपकी ठोकर से।
तो भैया स्पीड कम करें साथ में सवारियों को संख्या भी सीमित करें बीमित तो करा ही लिया होगा।
सिर्फ इसी सडक़ का प्रश्न नहीं है एक्सप्रेस हाइवे प्रतिदिन दुर्घटनाएं होती हैं किसी भी लेन में चलें वाहन और.रेलिंग के मध्य दूरी लगभग शून्य होती है। झपकी का समय आधा सेकंड और कई लोगों का गन्तव्य वहीं स्थिर। 
अरे भाई समय पर पहुँचने का मतलब गन्तव्य तक पहुँचना रखिए न कि भगवान के घर। मृतकों को श्रद्धांजलि और जो लोग इस लेख को पढ़कर सचेत न हों उन्हें श्रद्धांजलि की डीबीडी।(डबल बेनिफिट डिपाजिट) 

2 टिप्‍पणियां:

  1. रफ़्तार के दीवानों को इस बात का ज्ञान कहाँ भाई विमल जी | वे अपनी शान दिखाते में अपने अनमोल प्राण खेल-खेल में गँवा बैठते हैं |जिन अपनों को
    रुला कर जाते हैं उनके दर्द को वे क्या जाने |

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