शुक्रवार, 18 जून 2021

विषधर

तुम भी तने रहे, हम भी तने रहे।
गड्ढे भरी घृणा, उसमें सने रहे।
ताबूत बन गए, खुद के लिए हमीं,
अमरित भरा रहा, विषधर बने रहे।।

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