मंगलवार, 29 जून 2021

शहद के साथ

डॉक्टर ने दवा शहद के साथ बताई,
मैंने उसके अधरों से छुआ के खाई,
फायदा नुकसान मुझे मालूम नहीं,
राह में क्लीनिक दुबारा नहीं आई।

सोमवार, 28 जून 2021

कृपया, इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें

प्रायः बहुत सी वस्तुओं के पैक पर लिखा होता है, "कृपया, इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।" जब से इन्टरनेट आया है तब से प्रायः वीडियो इत्यादि पर लिखा होता है, "बच्चे नहीं देखें।" एक शब्द परिचय में आया, "पैरेन्टल कन्ट्रोल।" तात्पर्य कि मोबाइल या कम्प्यूटर में ऐसी सेटिंग्स कि बच्चों को कुछ सामग्री देखने से रोका जाए। 
एक दिन मेरी संवेदना जाग पड़ी कि इस संदर्भ में भी कुछ लिखा जाए तो कलमघसीटी चालू हो गई। अगर पैक या वीडियो पर चेतावनी न भी दी हो तब भी हमारी प्रवृत्ति है कि हम आदिकाल से बच्चों से बहुत सी चीजें छिपाते चले आए हैं। यह अलग बात है कि हम बच्चों से जो छिपा रहे होते हैं बहुत बार वह उन्हें पहले से पता होता है या वे चीजें उनकी पहुँच में होती हैं।
मुझे एक घटना तब की याद है जब मैं जनरल स्टोर का व्यवसाय करता था। एक दिन एक बच्चा जिसकी उम्र कोई दस वर्ष के अन्दर ही रही होगी मेरे पास कन्डोम का पैकेट लेन आया। तो मैंने उससे दो रूपये लिए और पैकेट दे दिया। बच्चे ने मुझसे पूछा कि इस पैकेट में क्या है? तो मैंने उससे कहा कि वह इस चक्कर में न पड़े और जिसने मँगाया हो उसे जाकर दे दे। किन्तु बच्चा तो बच्चा। उसने कहा कि वह पैकेट खोलकर जरूर देखेगा। मैं क्या कर सकता था? बच्चे ने पैकेट खोलकर देखा और जबरदस्त टिप्पणी की, "अच्छा, अब हम समझे काहे भाभी ने कही हती चुप्पइ हमइ दिअउ आइ कोइक बतइउ ना।" मुझे नहीं मालूम वह बच्चा क्या समझा क्या नहीं किन्तु मुझे उसकी समझ पर शंका भी नहीं।
एक साहब का किस्सा मुझे याद आता है कि उनके पास ऐसा ही एक पैकेट था, बच्चों की पहुँच से दूर रखने के लिए। उन्होंने नौ फुट ऊँची टाँड़ पर डिब्बे को सबसे पीछे हर सामान के पीछे रखा। मगर बच्चे खेलने लगे गेंदबाजी का खेल कमरे के अन्दर और गेंद भी कम्बख्त क्या उछली सीधे टाँड़ पर और डिब्बे के पीछे। बच्चों ने तख्त पर मेज और मेज पर कुर्सी और कुर्सी पर पाटा रखा और लगा दी स्वर्ग में सीढ़ी। मुझे रावण याद आ गया सुना है उसने सोने की सीढ़ी बनवाकर स्वर्ग तक लगाई थी। बच्चों ने हाथ बहुत आगे तक बढ़ाया किन्तु गेंद तो हाथ नहीं आयी नालायक डिब्बा हाथ आ गया।
अगली बार ऐसे ही किसी डिब्बे को बक्स के अन्दर ताला लगाकर रखा यह फार्मूला तो बिल्कुल ही बेकार निकला बच्चा शैतानों का सरदार निकला। छोटा बता रहा था कि बड़का ताले को हाथ लगाये बगैर ही बक्से का माल पार कर सकता है बस एक पेंचकस चाहिए। वह बक्से को आगे से नहीं पीछे से खोलेगा।
अगली बार साहब ने उस डिब्बे को कबाड़ यानी बेकार का सामान जो चलन से बाहर व निष्प्रयोज्य हो उसमें डाल दिया और सोचा बच्चे यहाँ न पहुँचेंगे। एक दिन साहब घर से बाहर और कबाड़ी घर के अन्दर। बच्चे सामान की छँटनी में जुटे तो डिब्बा उनकी नजर से कैसे बचता? 
भइया घर घर है और बच्चे भगवान। भगवान यानी अन्तर्यामी। घर में मेरी पहुँच दो एक कमरों में और बच्चों की घर के कोने कोने में। तो बच्चों की पहुँच से दूर रखना बहुत बड़ा दायित्व है। 
कुछ चर्चा मोबाइल और कम्प्यूटर में पैरेन्टल कन्ट्रोल की। कैसे करें? 
आजकल एक वाक्य कहा जाता है कि शाम को मोबाइल की मेमोरी डिलीट करके सोयें वरना मरने के बाद लोग जान जायेंगे कितना भला आदमी था। अब इसका भी बड़ा विचित्र किस्सा है। एक साहब गोवा पहुँचे, मौजमस्ती की। अपने कैमरे से फोटो खींची। वापसी में उन्हें लगा कि कैमरे में कुछ फोटो सेहत के लिए हानिकारक हैं अतः एक एक कर बहुत सारी फोटो उन्होंने डिलीट कर दीं। थोड़े दिनों के बाद एक कार्यक्रम की फोटोज उसी कैमरे से खींची गईं और असावधानीवश कैमरे की मेमोरी फार्मेट हो गई। तमाम लोगों से राय मशवरे के बाद भी फोटोज वापस आने का कोई रास्ता न सूझा तो एक दिन एक बच्चे ने अपना दिमाग लगाया और कम्प्यूटर में एक सॉफ्टवेयर लोड करके फोटोज रिकवर कीं तो वे फोटोज भी रिकवर हो गईं जो साहब की सेहत के लिए हानिकारक थीं। तो मेमोरी डिलीट करने का फार्मूला फेल है।
फोल्डर या कम्प्यूटर को पासवर्ड भले ही बड़े लोग न तोड़ पायें किन्तु बच्चे खेल लेते हैं पासवर्ड से। मैं क्या तमाम अधेड़ उम्र के लोग बड़े पैमाने पर अपनी कम्प्यूटर और मोबाइल की छोटी छोटी समस्याओं के लिए बच्चों पर ही निर्भर हैं। ऐसे में पैरेन्टल कन्ट्रोल सबसे वाहियात विचार है। प्रायः बड़े ऑनलाइन शॉपिंग की उतनी समझ नहीं रखते जितनी बच्चे। सेटिंग सम्बन्धी मामलों में भी बच्चे बहुत आगे निकल गए। मुझे तो विलियम शेक्सपियर की बात बिल्कुल जमती है, "चाइल्ड इज फादर ऑफ द मैन।" तो भइया एक ही विकल्प है बच्चा हो जाओ और घर में, मोबाइल में या कम्प्यूटर में कोई ऐसी चीज मत लाओ जो बच्चों की पहुँच से दूर रखनी पड़े। एक बात और 
मोबाइल ने बच्चों को बच्चा नहीं रखा।
यहाँ ऐसा कुछ नहीं बच्चों ने नहीं चखा।



बुधवार, 23 जून 2021

कवि की मौलिकता

मेरे एक मित्र का  प्रश्न था , "बंधु क्या कोई भी कवि मौलिक रहा, है या होगा?" मैंने जो उत्तर लिखा शायद वह आपके मतलब का हो।

मौलिक तो केवल ईश्वर है। कविता के सन्दर्भ में मौलिक होना अलग बात है। कविता के दो पक्ष हैं भाव पक्ष और कला पक्ष। कोई कवि अपने अनुभवजन्य हृदयोदगारों को अपने ढंग से प्रस्तुत करता है तो वह मौलिक ही माना जाता है। नये बिम्ब व नवीन उदाहरण का प्रयोग भी मौलिकता की श्रेणी में आता है। होता क्या है जब से फेसबुक आया है और उससे पहले भी लोग दूसरों की कविता अपनी बताकर ज्यों की त्यों सुना देते थे और छोटे समाचार पत्रों इत्यादि में छपवा तक देते थे। जब तब बेइज्जत भी होते थे।
आजकल भी फेसबुक पर कोई अच्छी सी कविता को मिनटों में तमाम कवि अपनी बता  देते हैं। कुछ होशियार किस्म के चोट्टे आजकल शब्दों में थोड़ी बहुत छेड़छाड़ कर कुछ नये शब्द जोड़कर दूसरों की कविता को अपनी बना लेते हैं। छन्द को स्वच्छंद कर कीचड़ से कलाकन्द हो जाने का भ्रम पाल लेते हैं। ऐसी कविता फेसबुक पर लाइक और कमेन्ट की संख्या बढ़ा सकती है किन्तु उसे कितने समय तक लोग याद रखेंगे भगवान ही जानता है। समय की कसौटी पर ऐसे कवि कवि मौलिक अमौलिक किसी भी श्रेणी में नहीं आते। स्वयं ऐसे कवि अपने हृदय पर हाथ रखकर देखें और याद करें कि आज कितनी रचनाएं उन्होंने मनोयोग से पढ़ने के बाद लाइक कीं या उनपर कमेंट कीं। तब यह सोचें कि उनके लाइक और कमेंट में कितने लाइक व कमेन्ट उनकी रचना को पढ़कर हुए होंगे यकीन मानिए बहुतों को अपने कवि होने पर ग्लानि हो जाएगी।
आप मौलिकता-अमौलिकता के चक्कर में न पड़ें। आपके अनुभव में जो आपके हृदय से छनकर आये वह व्यक्त करें तो कोई उंगली नहीं उठायेगा। वैसे भी मैं अनुभव कर रहा हूँ पिछले कुछ समय से आपका पुनर्जन्म हो गया है। एक अच्छा प्रश्न करके मुझे गद्य लिखने को प्रेरित करने के लिए धन्यवाद।

सोमवार, 21 जून 2021

महबूब

अब न हाथ में किताबें, कन्धों पर बस्ते होंगे,
सड़क पर मिल जायें तो भी एक न रस्ते होंगे।
जो बिक चुके हैं दूसरे की दहलीज पर प्यारे,
क्या करें महबूब का महबूब जो सस्ते होंगे।।
अन्तर्जाल से साभार

शुक्रवार, 18 जून 2021

विषधर

तुम भी तने रहे, हम भी तने रहे।
गड्ढे भरी घृणा, उसमें सने रहे।
ताबूत बन गए, खुद के लिए हमीं,
अमरित भरा रहा, विषधर बने रहे।।

गुरुवार, 10 जून 2021

अगले किसी मोड़ पर

ऐ! गुलब्बो,
ये तय है कि अगले किसी मोड़ पर मेरी तेरी राहें अलग हो जाएंगी। कुछ दूर तक एक दूसरे को शायद देखते भी रहें, किन्तु कहाँ तक? उसके बाद रहेंगी स्मृतियाँँ या वे भी नहीं। सौ वाट का बल्ब जलते ही पाँच वाट के बल्ब पर ध्यान कहाँ जाता है। फिर क्या प्रेम क्या घृणा दोनों को हृदय में रख पाना कठिन हो जाएगा। तो क्यों नहीं वर्तमान को मिठास से भर दें और घृणा का परिहास कर दें। अपने हृदय में झाँककर देखो और प्रेम तथा घृणा को पृथक पृथक पहचानने का यत्न करो। असफल हो गए न। जब प्रेम दिखता है तो घृणा नहीं और जब घृणा दिखाई दी तो प्रेम नहीं दिखाई दिया। क्यों? वास्तव में प्रेम और घृणा का पृथक पृथक अस्तित्व ही नहीं है। वे दोनों तो एक ही हैं। प्रेम और घृणा का एक एक कर दिखाई देना तो हमारी आँखों पर चढ़ी ऐनकों के कारण है। लाल गुलाब हरी ऐनक से बैंगनी दिखता है और पीली ऐनक से नारंगी। किन्तु गुलाब तो गुलाब ही है।
मैंने छोड़ दिया है तुममें भविष्य को देखना तुम भी छोड़ दो मुझमें अपने भविष्य को देखना। रेल की दो पटरियों की तरह साथ साथ होने का भ्रम मत पालो। दूर दूर रहकर भी जब तक साथ दिखाई पड़ रहे हैं तब तक स्लीपरों के सहारे टिके रहने का आनंद उठा लो। जैसे ही जंक्शन आयेगा दोनों का साहचर्य परिवर्तित हो जायेगा। फिर एक दूसरे के मार्ग की स्टेशनें पृथक हो जायेंगी।
तुम्हारा वर्तमान

गुरुवार, 3 जून 2021

दोपहर

जीवन की दोपहर बीतने वाली है।
तन है तृप्त तृषित मन सम्मुख, 
घट थोड़ा सा खाली है।
कहने को ही समय बहुत है,
छिपी काल की व्याली है।

हमारीवाणी

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