जब से बाबा रामदेव और आई एम ए के बीच तकरार शुरू हुई तो सोशल मीडिया पर कुछ लोग अपने अपने ढंग से इस युद्ध में कूद पड़े हैं। मैं कैसे चुप रहूँ यद्यपि मुझे न बाबा रामदेव से कोई सहानुभूति है न आई एम ए से प्रेम। सब अपने अपने ढंग से अपना बिजनेस चमका रहे हैं और व्यसायिक हितों को ध्यान में रखकर ही प्रलाप कर रहे हैं। कुछ लोग राजनीतिक कारणों से भी उछल कूद कर रहे हैं।
मेरा मुख्य बिन्दु बाबा रामदेव या आई एम ए नहीं हैंं अपितु मैं आयुर्वेद व एलोपैथ के मध्य समता व विषमता की चर्चा करना चाहूँगा।
दोनों में समानता:
1- दोनों की भावना मनुष्य व उसके पर्यावरण को रोगमुक्त करना है।
2- दोनों मनुष्य जाति का कल्याण चाहते हैं।
3- दोनों रोग के निदान व उपचार को प्रस्तुत करते हैं।
4- मानव जीवन को पीड़ा से मुक्त करना दोनों का ध्येय है।
5- दोनों में शरीर की संरचना व क्रिया विज्ञान का अध्ययन होता है।
6- दोनों औषधियों के निर्माण व रखरखाव से सम्बन्धित हैं।
दोनों में असमानता:
1- आयुर्वेद का जन्म मनुष्य सभ्यता के साथ ही जन्मा जबकि एलोपैथी आधुनिक है।
2- आयुर्वेद का क्षेत्र विस्तृत है जबकि एलोपैथी का क्षेत्र सीमित है।
3- आयुर्वेद मात्र निदान व उपचार नहीं बताता अपितु जीवन जीने की कला सिखाता है जबकि एलोपैथी तात्कालिक समस्या पर ही विचार करता है।
4- आयुर्वेद परम्परागत ज्ञान है हमारे देश का बच्चा बच्चा इससे परिचित है जबकि एलोपैथी कुछ व्यवसायिकों के मस्तिष्क की उपज है। यह अलग बात है कि आजकल आयुर्वेद शब्द के साथ ही व्यवसायियों ने बलात्कार करना प्रारंभ कर दिया है। आयुर्वेदिक पैन्ट बुशर्ट जूते बनने की देर है वरना बाजार में सब कुछ आयुर्वेदिक उपलब्ध है।
5- जहाँ आयुर्वेद सर्वांगीण विकास व उपचार की बात करता है वहीं एलोपैथी किसी रोग विशेष पर ही ध्यान केंद्रित कर उपचार प्रारंभ करती है।
6- आयुर्वेद एक श्रेष्ठ जीवनोपचार पद्धति है इसमें शंका नहीं किन्तु एलोपैथी त्याज्य नहीं है क्योंकि जब आत्ययिक (इमरजेंसी) रोगों का प्रश्न खड़ा होता है तब एलोपैथी का कोई विकल्प नहीं।
7- आयुर्वेद एक धीमी उपचार पद्धति है, त्वरित उपचार में एलोपैथी ही उपयोगी है।
8- आयुर्वेद चिकित्सा में लम्बे समय से (लगभग 7 वीं 8 वीं शताब्दी से) शोध कार्यों की उपेक्षा हुई है अतः एलोपैथी के मुकाबले कुछ क्षेत्रों में आगे होते हुए भी कुछ क्षेत्रों में पिछड़ गई है।
9- आयुर्वेद जहाँ दीर्घकाल से अपने औषधीय गुणों के सन्दर्भ में स्थायी है वहीं एलोपैथी की औषधियाँ अपनी खोज के एक समय के पश्चात अपना प्रभाव खो देती हैं।
10- यह भी माना जाता है कि आयुर्वेदिक औषधियों के साइड इफेक्ट नहीं होते जबकि एलोपैथी में होते हैं। फिलहाल मैं इस तथ्य को नहीं मानता क्योंकि तमाम लोगों को गेहूं, दूध, परागकणों आदि से एलर्जी होती है और सेवन से दुष्प्रभाव भी होते हैं।
और भी बहुत सी समता व विषमता दोनों में हो सकती है सबसे महत्वपूर्ण आयुर्वेद पैथी नहीं जीवन जीने की कला है किन्तु आधुनिक युग में एलोपैथी का आश्रय भी अनिवार्य है।
आवश्यकता इस बात की है कि अब हम परतंत्र नहीं हैं न राजपूतों के, न मुस्लिमों के और न अंग्रेजों के अतः आयुर्वेद में शोध कार्यों को बढ़ावा दिया जाए और आत्ययिक रोगों के उपचार मेंं इसकी उपयोगिता बढ़ाने पर बल दिया जाए। तब तक किसी विवाद को न खड़ा करते हुए दोनों पैथियों के समन्वय से प्राणी जगत को लाभान्वित किया जाए।
जय आयुर्वेद।