मंगलवार, 7 नवंबर 2017

टीवी



ताज्जुब होता है कि टेलीविज़न भी क्या जादुई चीज समाज को प्राप्त हुई| मिथक साकार हो गये| हजारों मील दूर के दृश्य मनुष्य घर बैठे ही देख सुन लेता है| समाचार, नाटक, फ़िल्में, खेलकूद, नाचगाना, साहित्य, संगीत, कला और तमाम कल्पनातीत चीजें| आजकल तो तमाम शैक्षणिक विषयवस्तु भी इसके माध्यम से प्रस्तुत की जाने लगी है, फिर भी आजतक टेलीविजन बुद्धू बक्से की अपनी तस्वीर से मुक्त नहीं हो पाया है|
अब आप देखें एक फिल्म देखने के लिए टीवी के किन्हीं किन्हीं चैनलों पर 5 से 6 घंटे तक चाहिए होते हैं| हर 10-15 मिनट के बाद 5-10 मिनट का विज्ञापन! कभी कभी तो लगता है कि फिल्म चैनल देख रहे हैं या विज्ञापन चैनल| इस मामले में धारावाहिक चैनलों के क्या कहने? दिमाग पकाने की कला में बिल्कुल प्रवीण| अधिकांश पारिवारिक धारावाहिकों में कहानी शुरू तो होती है पर खत्म नहीं होती अगर खत्म होता है तो धारावाहिक ही खत्म हो जाता है| एक ही फ्लैश बैक बार बार दिखाना तो बहुत बार हजम ही नहीं होता|
न्यूज़ चैनल उनका क्या? उनके पास वैसे भी कहने के लिए ज्यादा कुछ नहीं होता| एक मुद्दा पकड़ कर जब टी आर पी बनी रहे तब तक दिखाया जाता है| और इस तरह एंकर बार बार जोर देकर कहता कि लगता है अगले ही पल उसे कुछ ऐसा पता लगेगा जो शायद इस लोक में सम्भव नहीं| लेकिन 30 मिनट बाद जब एंकर विषय को बदल देता है तब समझ में आता है कि समाचार सुनने से तो अच्छा था भैंस चरा लाता|
आजकल एक धारावाहिक देख रहा हूँ स्टार भारत पर “आयुष्मान भवः”| क्या कहानी है पूर्व जन्म पर आधारित| अविनाश नाम का एक चरित्र अपनी युवावस्था में (यद्यपि उसकी उम्र के बारे में धारावाहिक में कुछ भी नहीं कहा गया है फिर 25 से कम का तो देखने में नहीं लगता) मारा जाकर दुबारा कृश के रूप में जन्म ले लेता है वह 8 वर्ष की उम्र में अपने हत्यारों से बदला लेने के क्रम में दुबारा उनकी गोली का शिकार होता है और बच जाता है 13 साल बाद पुनः लौटकर हत्यारों के पास बदला लेने की लिए आता है| इस प्रकार कुल इक्कीस वर्ष बीत जाते हैं यदि अविनाश जीवित होता तो उसकी उम्र कोई 45-46 वर्ष होती| बड़ी मजे की बात यह है सुधीर, विक्रांत, समायरा जैसे पात्रों की न तो उम्र बदलती है न चेहरे पर उम्र का प्रभाव दिखता है| विक्रांत आज भी जवान है, समायरा आज भी हसीन है, सुधीर आज भी पालतू कुत्ता है| अरे भाई थोड़ी तो मेहनत करो|थोड़ा तो दिमाग लगाओ तो हमारे जैसों के दिमाग पकाओ तो अच्छा लगेगा|
एक और मसला है फिल्मों से जुड़ा| “पद्मावती” फिल्म पर बड़ा विवाद है, निर्माता, निर्देशक व लेखक हर कोई अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देता फिर रहा है| ऐसे ही एक धारावाहिक चला था “जोधा अकबर”| कौन कहता है कि आपको अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है, किन्तु अभिव्यक्ति की ऐसी आजादी आप क्यों चाहते हैं जो इतिहास को विकृत कर दे?
तो बन्धु टीवी देखें जरूर पर संभलकर कहीं ऐसा तो नहीं आप भी मेरी तरह बुद्धू बने बैठे हैं|

1 टिप्पणी:











हमारीवाणी

www.hamarivani.com
www.blogvarta.com