शनिवार, 11 नवंबर 2017

क्या ऐसा हो सकता है?



मन की कितनी परतें खोलूँ|
बोलूँ तो मैं क्या क्या बोलूँ?
और बोल कर निर्भय डोलूँ|
क्या ऐसा हो सकता है?
मन संशय खो सकता है?
वादे बड़े बड़ी आशायें|
उर पर उगी कठोर शिलायें|
जन जन को कैसे समझायें?
क्या ऐसा हो सकता है?
जन का भय खो सकता है?
गंगा भी मैं यमुना भी मैं,
सरस्वती की संरचना मैं|
लेकिन कितना सूक्ष्म मना मैं?
क्या ऐसा हो सकता है?
मेरा मैं खो सकता है?

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