मंगलवार, 27 मई 2025

भण्डारा

भोजन उसे कराइए, उर से दे आशीष।
भण्डारे में कीजिए, तनिक न पैसा खीस।
तनिक न पैसा खीस, कीजिए फोटू खातिर।
लोग समझने लगे मियां तुम पूरे शातिर।
भण्डारे की आड़ दिख रहा अहं युक्त मन।
जब भूखा मिल जाए करा दो उसको भोजन।।


सोमवार, 26 मई 2025

वे ही दोषी नहीं

किसने व्यभिचारी को चुनकर
प्रतिनिधि अपना बना लिया।
और सुअर ने सत्ता पाकर,
मुॅंह कीचड़ में सना लिया।
वे ही दोषी नहीं द्यूत में,
जो नारी को हार गये हैं।
कन्धे पर गांडीव टॅंगा था,
किन्तु मौन को धार गये हैं।
अरे! हस्तिनापुर के वासी,
तुमने दुर्योधन को झेला।
तुम भी उतने ही दोषी हो,
कुरुक्षेत्र में लगा झमेला।
सत्ता का आस्वाद लगा है,
तुम लोगों की दाढ़ों में भी।
इसीलिए हर ओर जहर है,
कैपसूल में काढ़ों में भी।
तुमको रण में घुसकर ही,
मरना होगा इतना तय है।
माथे पर कलंक गाथा ले,
तिरना होगा इतना तय है।

सोमवार, 12 मई 2025

व्यथा

हम राजा हैं,
जिसमें एक व्यथा भी है।
जो दिखता है,
उसके पीछे एक कथा भी है।
हलवा राजा की हलक में,
काट रहा है।
पूरा देश,
राजा की खोपड़ी चाट रहा है।
भगत सिंह फॉंसी पर,
गॉंधी नोटों पर चढ़े।
वर्तमान के स्तम्भ,
इतिहास पर खड़े।
राजा का छप्पन है,
गॉंधी का छत्तीस रहा होगा।
गॉंधी की क्या लाचारी होगी,
हृदय में कितना खून बहा होगा।
राजा,
इसे सीजफायर के निर्णय के आलोक में देख रहा है।
जन,
इसे सिन्दूर की लाली के शोक में देख रहा है।

हमारीवाणी

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