सोमवार, 26 मई 2025

वे ही दोषी नहीं

किसने व्यभिचारी को चुनकर
प्रतिनिधि अपना बना लिया।
और सुअर ने सत्ता पाकर,
मुॅंह कीचड़ में सना लिया।
वे ही दोषी नहीं द्यूत में,
जो नारी को हार गये हैं।
कन्धे पर गांडीव टॅंगा था,
किन्तु मौन को धार गये हैं।
अरे! हस्तिनापुर के वासी,
तुमने दुर्योधन को झेला।
तुम भी उतने ही दोषी हो,
कुरुक्षेत्र में लगा झमेला।
सत्ता का आस्वाद लगा है,
तुम लोगों की दाढ़ों में भी।
इसीलिए हर ओर जहर है,
कैपसूल में काढ़ों में भी।
तुमको रण में घुसकर ही,
मरना होगा इतना तय है।
माथे पर कलंक गाथा ले,
तिरना होगा इतना तय है।

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