विज्ञान का यथारथ कवि उर की कल्पना है।
तुम हो खुशी मनाते पर चाॅंद अनमना है।
जो भी कहे ये दुनिया मैं मानता नहीं हूॅं,
मेरा चाॅंद खुरदुरा है यह बात ही मना है।।
सौन्दर्य का नहीं प्रिय कोई बाॅंट दूसरा है।
सब यान जा के उतरे वह ठाॅंव दूसरा है।
हमने हमेशा पूजा पूजा किया करेंगे,
वह चाॅंद दूसरा है यह चाॅंद दूसरा है।।
स्नेहिल सुधा सुसज्जित सोलह कला सॅंवारे।
हे! दक्ष के जमाता शिव शीश डेरा डारे।
अनसूया-अत्रि के सुत दुर्वासा तेरे भाई,
कोई ऑंख जो दिखा दे फौरन उन्हें पुकारे।।
हे कृष्ण के खिलौने जन जन के जगत मामा।
विज्ञान है निठल्ली इसको न कोई कामा।
शायर गजल कहेंगे पण्डित पढ़ेंगे मन्तर,
निश्चिन्त हो गगन में जपो राम राम रामा।।