ये गज़ल मेरी नहीं है आपकी है।
जो कलम है आपकी ही नाप की है।।1।।
हमको क्या है तर्जुमा ही जानते हैं।
आप जानो पुण्य की है पाप की है।।2।।
ये जो ऑंखें बन्द कर मक्कर किये हो,
जैसी भी है पर अदा ये टॉप की है।।3।।
खुश हूॅं या गुस्सा हूॅं मैं तेरी बला से।
कैफियत तेरी धनुष के चाप की है।।4।।
इस शहर को छोड़कर जाना पड़ा तो।
हर सवारी इस 'विमल' के बाप की है।।5।।
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