बुधवार, 16 अगस्त 2023

हार बैठे जिन्दगी

सोच में बन्दूक या खंजर छुरी तलवार थी।
किन्तु मक्तूलों के दिल पे दो नयन की धार थी।।1।।
थी नहीं पहचान कैसी है मुहब्बत की नजर।
इसलिए मैं बच गया वह मौत की ललकार थी।।2।।
खुद से दुनिया छोड़कर जाने का मुझको हक न था,
जिन्दगी ईश्वर ने दी थी उसका ही अधिकार थी।।3।।
बैठकरके सामने क्यों दो घड़ी बातें न कीं?
हार बैठे जिन्दगी ऐसी भी जिद बेकार थी।।4।।
त्यागना था त्यागता संसार में आसक्ति को।
तन छुटा पर कर्म संग था मृत्यु केवल भार थी।।5।।

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