बुधवार, 27 अप्रैल 2022

रोटी और अचार से

हमने सोना शुरू कर दिया, छत पर इस इतवार से।
चार पड़ोसी भड़क गए हैं, अपने इस व्यवहार से।।1।।
अभी दूर की नजर हमारी इतनी ज्यादा तेज है।
मीलों भर से जान सकें हम काँपे कौन बुखार से।।2।।
बाजारों से बच कर रहना, महाजनों के जाल ये।
बड़े बड़ों की हस्ती मिट गई, उबरे नहीं उधार से।।3।।
जो गुलाब से दमक रहे हैं, क्या बकरे सब स्वस्थ हैं?
इनमें से बहुतेरे रोगी, हैं डॉक्टर की मार से।।4।।
लाउडस्पीकर जब से उतरा, मन्दिर की प्राचीर से,
अपना झगड़ा सब सुनते हैं, टिकट लिए तैयार से।।5।।
इतना मीठा नहीं खिलाओ, मित्र पड़ूँ बीमार मैं।
मन की तृप्ति 'विमल' को मिलती, रोटी और अचार से।।6।।

बुधवार, 13 अप्रैल 2022

बड़े

एक दिन हम अपने घर में हो गए सबसे बड़े।
मेज पर थीं कुर्सियां और कुर्सियों पर हम खड़े।
सच यही है हम बड़े हों यह कभी सोचा नहीं,
नाक मुँह डूबा रहे और हम दही में हों पड़े।
जो बड़े थे गोल-सीधे और लम्बाई लिये,
सब गये चीरे हसीनाओं के बेड में थे जड़े।
इसलिए भी हम बड़े होना नहीं हैं चाहते,
उम्र में लगते ससुर भौजाई कहने को अड़े।
गाँव भर की औरतें सब फाड़ देतीं चित्त को,
जेठ कहतीं बुड्ढियाँ भी बाल जिनके सब झड़े।
हम बड़े थे हर तरह से हमको ही डाँटा गया,
शेष दुलराये गए थे माँ की गोदी में गड़े।

मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

कविता का मरहम

जो मुकद्दर में लिखाकर लाए हैं।
वो छुहारे हमने अब तक खाए हैं।
यूँ तो मुसम्मी रसभरी थी हाथ में,
किन्तु सिर पर पत्थरों के साए हैं।
जो मिला हम उसपे लट्टू हो गए,
नच-नचाकर ही यहाँ तक आए हैं।
हम झमेलों से बहुत ही दूर हैं,
राह सीधी पर हमेशा छाए हैं।
झूठ है सब हमने अब तक जो कहा,
हम तुम्हारी ही तरह भरमाए हैं।
थे तुम्हारी दिलजली को जानते,
इसलिए कविता का मरहम लाए हैं।

शनिवार, 9 अप्रैल 2022

बहुत बड़े पाजी

हम तो बहुत बड़े पाजी हैं तुम भी बहुत बड़े पाजी।
झोला बंद बंद रहने दो बाजा अभी नहीं बाजी।।1।।
कौए हों या कोयल सबके अपने मौसम होते हैं।
पपिहा है बस इन्तजार में स्वाति किस दिवस हो राजी।।2।।
राजनीति पर चर्चा के हैं खतरे बहुत बड़े भारी।
हिटलर भले मिट गया लेकिन जन्मे नए नए नाजी।।3।।
हम फकीर हैं कहते कहते, सबको भीख मंगा डाली,
क्लास एक से विद्यालय में बंटती है रोटी भाजी।।4।।
राम और रहमान सभी हैं, मुफ्त मिले पर चंगे से।
दल कोई हो जन को लेकर, दलदल में है पहुँचा जी।।5।।
गूँज गई मंदिर में घंटी, प्रभु की याद दिला बैठी,
वरना 'विमल' विमल हो लिखता, इसके आगे कड़वा जी।।6।।

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

कर्जे अदा

आप सबसे इश्क मेरा अलहदा।
आप जिस पर मर गए मैं हूँ फिदा।।1।।
अब जुए का खेलना ही तज दिया,
एक उसकी झलक पर रुपया बदा।।2।।
द्वार पर पापा रहे माँ छत खड़ी,
हमने खिड़की से किये कर्जे अदा।।3।।
शातिरों ने रातरानी छेंड़ दी,
मैं तो बेला के लिए दहशतजदा।।4।।
मैं खुशी से जान देता, माँगते!
हो हलक पर जब छुरी तो क्या सदा?।।5।।

रविवार, 3 अप्रैल 2022

नया शगल

पावर में आकर गरियाना नया शगल।
जबकि पता है जो भी आया लिया निकल।।1।।
लोकतंत्र में हाथापाई जायज है।
कुर्सी पर बैठे हैं फिर क्यों उखल-बिखल।।2।।
अब सच्चा इतिहास लिख रहे, उजले ठग।
गंजों के सिर पर हैं कीलें रहीं मचल।।3।।
सच कहने की कीमत मैं दे डालूँगा,
संभव नहीं कींच-कच्चड़ में पड़ूँ फिसल।।4।।
'मुँह में राम बगल में छूरी' सत्य कहा है,
राम संग माया का रहना तथ्य सरल।।5।।
देशद्रोहियों में लिख जाना अच्छा है।
खुद की नजरों में गिर जाना नहीं 'विमल'।।6।।
विमल 9198907871

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