लो बीता हिन्दी दिवस, खत्म हो गया स्वांग।
किचन और ऑफिस चढ़ी, अंग्रेजी की भाँग।
अंग्रेजी की भाँग, गटककर मुर्गा सोता।
अंग्रेजी रँग बाल, रँगे बाबा का पोता।
चढ़ छज्जे पर मेम, बन गयी देशी सीता।
हिन्दी हित हर हाथ, दिख रहा एक पलीता।।
9198907871
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (16-09-2020) को "मेम बन गयी देशी सीता" (चर्चा अंक 3826) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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हार्दिक आभार बड़े भाई।
हटाएंआदरणीय विमल कुमार शुक्ल "विमल" जी, बहुत सुंदर कुंडलियां छंद में हिंदी दिवस की औपचारिक खानापुरी पर तीखा व्यंग्य! साधुवाद!
जवाब देंहटाएंमैंने आपका ब्लॉग अपने रीडिंग लिस्ट में डाल दिया है। कृपया मेरे ब्लॉग "marmagyanet.blogspot.com" अवश्य विजिट करें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं।
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सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ
हार्दिक धन्यवाद बड़े भाई। अवश्य आपके ब्लॉग पर जाया जाएगा।
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