रविवार, 6 सितंबर 2020

हिन्दी का प्रयोग करें

मैं हिन्दी साहित्य का छोटा सा विद्यार्थी हूँ। सब हिन्दी भाषा की दशा और दिशा पर चर्चा करते हैं तो मैं भी इस पर कभी-कभी विचार करता हूँ। अपने विकास की प्रक्रिया में कोई वस्तु कहाँ है? यह मेरी दृष्टि में महत्वपूर्ण नहीं है अपितु महत्वपूर्ण यह है कि वह वहाँ किन परिस्थितियों में किन मार्गों से होकर पहुँची है और उसने कितना समय लिया है।
हम हिन्दी साहित्य के इतिहास में पढ़कर आये हैं कि हिन्दी वीरगाथा काल से शुरू होती है और भक्तिकाल व रीतिकाल से होते हुए आधुनिक युग तक पहुँची है।
आजकल भाषा के विकास व प्रसार को लेकर जैसी उत्सुकता दिखाई देती है वह 18वीं सदी अथवा उससे पूर्व कब दिखाई दी? वास्तव में हिन्दी भाषा की प्रतिस्थापना देश में पुष्पित-पल्लवित हो रही अन्य भाषाओं की तुलना में नवीन है।
चंदबरदाई, जगनिक, नरपति नाल्ह, सूर, कबीर, तुलसी, मीरा, रसखान, घनानन्द, भूषण, मतिराम, बिहारी, केशव, मीराबाई और तमाम क्या हिन्दी के कवि हैं? इन्होंने उत्तम कोटि का साहित्य विभिन्न उद्देश्यों से लिखा किन्तु इनमें से किसने हिन्दी साहित्य के विकास के लिए सोद्देश्य कार्य किया? मुझे नहीं लगता किसी ने किया हो। वास्तव में इनके समय में भाषा का प्रश्न महत्त्वपूर्ण नहीं रहा| इन्होंने शायद विचार भी नहीं किया कि वे हिन्दी में लिख रहे हैं| अमीर खुसरो का जिक्र आता है कि उन्होंने हिन्दवी शब्द का प्रयोग किया| हिन्दवी वह भाषा जो मध्य भारत में बोली जाती थी और जिसमें अरबी फारसी के शब्दों का अभाव था| उसी समय के जो अन्य कवि हैं उन्होंने अपने ग्रन्थों में भाषा या भाखा शब्द का प्रयोग किया| किन्तु उस समय हिन्दी शब्द का प्रयोग दूर की कौड़ी थी|
तेरहवीं सदी से लेकर अठारहवीं सदी तक प्रायः एक भाषा अस्तित्व मध्य भारत में रही जो आमजन के द्वारा प्रयोग की जाती रही जिसमें क्षेत्रीयता का प्रभुत्व रहा या कहें प्राचीन भारतीय भाषाओँ के शब्द बहुलता से प्रयोग होते थे|  जब यह भाषा मुस्लिम दरबारों में पहुँचती थी इसी में अरबी फारसी के शब्दों का घनत्व बढ़ जाता था| जब यही भाषा राजदरबारों से बाहर आयी तो एक अजब घालमेल हुआ एक ऐसी भाषा प्रचलन में आयी जिसके लिए नाम देना ही कठिन (सिर्फ मेरे विचार से)|  जैसे ही अंग्रेज आये उन्होंने फूट डालनी प्रारम्भ की और वे इस भाषा के लिए दो नामों की धारणा लेकर आये| एक हिन्दी दूसरी उर्दू| जो देवनागरी लिपि में संस्कृतनिष्ठ लिखी गयी वह हिन्दी और जो फारसी लिपि में अरबीफारसीनिष्ठ लिखी गयी वह उर्दू| आपको देवकी नन्दन खत्री का उपन्यास 'चन्द्रकान्ता' याद होगा| जरा याद करो किस भाषा में है? कहते हैं कि वह हिन्दी के प्रथम तिलिस्मी उपन्यास कार थे| मैंने इस ग्रन्थ का कुछ अंश पढ़ा है अधिकांश उर्दू शब्दावली का प्रयोग है| 
अंग्रेजों ने भले ही शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजी को आगे बढ़ाया हो किन्तु मुझे आजतक समझ में नहीं आया कि क्यों अदालती काम काज आज भी उर्दू में होते हैं| अब धीरे धीरे भले ही लिखापढ़ी में हिन्दी प्रयोग में आ रही हो किन्तु फिर भी बहुत सा काम अभी भी उर्दू में ही होता है| थोड़े दिन पहले तक प्रशासनिक परीक्षा में अंग्रेजी का बोलबाला था| धीरे धीरे ही सही हिन्दी व दूसरी भारतीय भाषाओं के विद्यार्थी भी अब इन परीक्षाओं में बैठ पाते हैं| 
मुझे बहुत बार ऐसा प्रतीत होता है कि उपरोक्त को ध्यान में रखें तो हिन्दी बिल्कुल नवीन भाषा है जो अपने विकास के लिए छटपटा रही है| आओ इसके विकास में हम भी अपना योगदान दें| जहाँ अनिवार्य न हो वहाँ हिन्दी का ही लिखने पढ़ने में प्रयोग करें| सामने वाले को हिन्दी के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करें| 


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