मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

दस का बीस

दो की पुड़िया आठ में, बण्डल दस का बीस।
वो मिलता मिलता है तभी, किस्मत हो इक्कीस।।
केवल सब्जी मिल रही, ठीकठाक है दाम।
कोरोना के राज्य में, बाकी सब बेदाम।।
बन्द दुकानें हैं सभी, तलब लगी है जोर।
आना जाना है कहीं, सही समय है भोर।।
चाहे जो भी बन्द हो, बन्द नहीं है पेट।
शून्य कमाई हो गयी, खाली हो गयी टेंट।।
जैसे अंध सुरंग में, यात्रा हुई अनन्त। 
इस बन्दी का देखिये, कब होता है अन्त।।

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