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बुधवार, 30 अक्टूबर 2019
असमान भुजा के चतुर्भुज का क्षेत्रफल
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मंगलवार, 29 अक्टूबर 2019
हिन्दी में शब्द
देशकाल के अनुसार भाषा का विकास होता रहता है। एक समय था जब हिन्दी में देशज शब्दों का प्रयोग बहुतायत में होता था। रचनाकार व सामान्य जन अपने अपने अनुसार प्रयोग कर लेते थे व समझ लेते थे। किन्तु अब जब हम वैश्विक इकाई बनने की ओर अग्रसर हैं तो अपेक्षाकृत अधिक शुद्ध एवं मानक हिन्दी शब्दों के प्रयोग के लिए रचनाकारों को तत्पर होना चाहिए। इसके लिए रचनाकार को क्षेत्रीयता से ऊपर उठना होगा। यदि क्षेत्रीय भाषा में लिखते हैं तो अच्छी बात है खूब देशज शब्दों का प्रयोग करते हुए चाहे तो नवीन शब्दों की सर्जना भी कर सकते हैं। किन्तु जब हम अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी का प्रचार-प्रसार चाहते हैं तो हमें उसे इस योग्य बनाना होगा कि वह सम्पूर्ण विश्व में एक सी समझी, लिखी, पढ़ी व बोली जाए। इसलिए जो हिन्दी कबीर, तुलसी, रसखान व भारतेंदु हरिश्चंद्र लिख गए हमें उस हिन्दी से बचना होगा।
अब फेसबुक की अपनी समस्या है। यहाँ प्राइमरी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त लोग रचना कर्म में संलग्न हैं। सबको अपना ज्ञान अधिक और दूसरे का कम प्रतीत होता है। बेकार लोगों से लेकर अत्यधिक व्यस्त लोग यहाँ विद्यमान हैं। अच्छी रचनाओं से लेकर कूड़ा करकट तक झोंका जा रहा है। बिना पढ़े ही लाइक और कमेन्ट झोंके जा रहे हैं। चूतियों की कमेन्ट पाकर जिन्होंने अपने को बहुत बड़ा रचनाकार मान लिया है यदि उन्हें कुछ भी बताने का यत्न करेंगे तो उनके अहं को ठेस पहुंचती है। अतः उन्हें समझाया भी नहीं जा सकता।
एक ही तरीका है कि रचनाकार स्वयं अपने को अध्ययनशील बनाएं और मानक हिन्दी का प्रयोग करें। यदि कोई आलोचना है तो उसे हृदयंगम करें। देशज व बोलचाल के शब्द पढ़ने के लिए ठीक हैं किन्तु जापान से अमेरिका तक के आकाश पर अपनी रचनाओं के प्रसार के लिए हमें अधिक परिष्कृत हिन्दी शब्दों के प्रयोग पर ध्यान देना होगा।
बुधवार, 16 अक्टूबर 2019
बैंक जमा
अभी तो किसी दिन आधी रात को आवाज गूँजनी बाकी है, मेरे प्यारे भाइयों, देश की सभी बैंकों में जबरदस्त घाटा हुआ है उद्योग व्यापक मंदी के शिकार हैं, और सरकार मदद कर पाने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि RBI का रिजर्व हम पहले ही खर्च कर चुके हैं। आप सब इस देश के भक्त हैं आपको धैर्य रखना होगा जब तक बैंकें अपना कारोबार बेचकर उबर नहीं जातीं तब तक आप सरकार का साथ दें। आप स्वेच्छा से बिल्कुल सब्सिडी की तरह देश हित में अपनी बैंक जमा बैंकों में ही रहने दें। अगर आप अपना पैसा लेने भी जायेंगे तो बैंक आपको अधिकतम एक लाख की ही वापसी करेगी और कोई कोर्ट आपकी मदद नहीं करेगी। हममें से बहुतों को नहीं पता आपात स्थितियों मैं आपको सिर्फ एक लाख का रिस्क कवर देती है आपका फालतू जमा बैंक व सरकार की मर्जी पर है।
मेरी समझ में यह नहीं आता कि कोई बैंक अपनी असावधानी या अपने भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों के कारण मेरा पैसा खतरे में कैसे डाल सकती है। एक समय था जब बैंक अपने निवेशकों को पर्याप्त रिटर्न देती थी। ग्राहक बैंक कर्मचारियों पर विश्वास करता था। किन्तु पिछले 20 वर्षों में ग्राहक अपनी ही जमाओं के लिए लम्बी लम्बी लाइनों में खड़ा होता है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र की शाखाओं में दलालों का बोलबाला है। खाता खुलवाने में टालमटोल, केवाईसी के नाम पर उत्पीड़न, पासबुक प्रविष्टि के लिए कभी स्टाफ की कमी, कभी प्रिंटर की समस्या तो कभी नेटवर्क की, कभी कैश की कमी का रोना इत्यादि अनन्त समस्याएं हैं। जिनसे अर्द्धशिक्षित जनता प्रायः जूझती है। बैंक कर्मचारियों को और व्यवस्था को गालियाँ देती है।
जब से विभिन्न प्रकार की योजनाओं का पैसा बैंक के माध्यम से मिलने लगा है तब से कुछ बैंक कर्मचारी बेइमान भी हो चले हैं। ग्राहकों के साथ बेइमानी तो करते ही हैं अपने मिशन व देश से भी गद्दारी करने लगे हैं। आखिर कौन नहीं जानता नोटबंदी बैंकों के भ्रष्टाचार के कारण ही बेअसर हो गई और पब्लिक परेशान हुई सो अलग।
बात करें निजी बैंकों या गैर बैंक वित्तीय संस्थाओं की तो उत्तर प्रदेश में सहारा बैंक ने बहुतों को बेसहारा कर दिया। PMC बैंक का भट्ठा बैठना तो बिल्कुल ताजा उदाहरण है।
आखिर सरकार कब जागोगी और बैंकों की विश्वसनीयता लौटेगी? इसकी प्रतीक्षा रहेगी।