विचार तो खालीपन में ही आता है। ये बात और
है कि खाली दिमाग शैतान का घर कहा जाता है।
किसी जमाने में भारत देश में एक बादशाह हुआ
मुहम्मद तुगलक कहते हैं कि बड़ा ही सिरफिरा बादशाह था। वह इतिहास तो लिख लिया गया क्योंकि
वह एक था आज का इतिहास कैसे लिखा जायेगा जिधर नजर दौड़ाइये तुगलक ही तुगलक नजर आते हैं। किसी और क्षेत्र की बात हो तो बात
हजम हो जाती है मगर जब बात शिक्षा के क्षेत्र की होती है तो बात हजम नहीं होती।
मैंने अपने लेख टी ई टी की नौटंकी शीर्षक की
पोस्ट में लिखा था कि सरकार टी ई टी के अभ्यर्थियों को मूर्ख बना रही है जो प्रति अभ्यर्थी
तीन जिलों से आवेदन भरवा रही है किन्तु मैं अब क्या लिखूं जब मैने जाना कि उत्तर प्रदेश
सरकार ने प्रति अभ्यर्थी पांच जिलों से आवेदन के लिये विज्ञापन निकाला है।
केवल इतना ही होता तो भी गनीमत थी अभ्यर्थी
हाईकोर्ट पहुंचे अर्जी लेकर कि उन्हें किसी भी जिले से मनमाफिक संख्या मे आवेदन करने
दिये जायें मैं पूछना चाहता हूँ कि आखिर कितनी बेइज्जती करवाओगे कोर्ट से डिमाँड तो
यह करनी चाहिये थी कि उन्हें आवेदन करने कि प्रक्रिया से ही छूट प्रदान की जाये और
यदि आवेदन भरवाना आवश्यक ही हो तो प्रदेश लेवल पर फार्म भरवा कर कौंसिलिंग करानी चाहिये
इससे अभ्यर्थियों क काफी समय, श्रम और पैसा बच जाता। अब
इस तरह सरकार की आमदनी तो बढ़ जायेगी किन्तु अभ्यर्थियों पर बहुत अधिक बोझ बढ़ जायेगा।
इतना ही निवास के संदर्भ में जो शपथ पत्र माँगे गये हैं वह भी अनुचित ही है ऐसे शपथ
पत्र अथवा प्रमाण पत्र कौंसिलिंग के समय माँगे जाने चाहिये। फिर अभ्यर्थी जब नौकरी
से पूर्व निवास प्रमाण पत्र बनवाकर जमा करेगा तब ऐसे शपथ पत्र का औचित्य समझ में नहीं
आता। फिर यह शपथ पत्र तो लेखपाल और कानूनगो को देना चाहिये कि उन्होंने सही रिपोर्टें
लगाईं हैं तथा तहसीलदार को देना चाहिये कि उन्होंने सही सर्टीफिकेट जारी किय़ा है।
वैसे भी हिन्दुस्तान में कोई भी सर्टिफिकेट
फर्जी बनवाना हो सरकारी कुत्ते आसानी से बना देते हैं लेकिन अगर सही सर्टिफिकेट बनवाना
हो तो नाकों चने चबाने पड़ते हैं। आखिर निवास प्रमाण पत्र बनवाने के लिये इतनी जटिल
प्रक्रिया की क्या आवश्यक्ता है पहले निवास प्रमाण पत्र के लिये आवेदन के साथ शपथ पत्र
लगाओ फिर दो गजेटेड अधिकारियों से प्रमाणित कराओ तब लेखपाल व कानूनगो को क्रमशः पूजो।
और हफ्ते भर में हासिल करो प्रमाण पत्र। अब कोई मुझे बताये कि क्या शपथ पत्र झूठा नही
दिया जा सकता, आखिर गजेटेड अधिकारी के पास कौन सा रिकार्ड होता है जिससे वह परिचय
दे सकता है यदि परिचय देने का आधार व्यक्तिगत जान पहचान है कृपया कोई गजेटेड अधिकारी
ही मुझे बता दे की वह अपनी नियुक्ति वाले क्षेत्र में कितने हजार लोगों को व्यक्तिगत
रूप से जानता है। शायद कुछ सैकड़ा लोगों को भी नहीं जबकि हजारों की संख्या में लोग आय
जाति निवास प्रमाण पत्र रोज बनवाते हैं तो ऐसे में उसके परिचयदान पर कितना भरोसा किया
जा सकता है। मैने तो यहाँ तक भोगा है कि इस परिचयदान को पैसे देकर हासिल किया है।
वास्तव में निवास की तस्दीक कर सकता है स्थानीय
निकाय जैसे ग्राम पंचायत, नगर पालिका, क्षेत्र पंचायत, टाउन एरिया आदि। अथवा पोस्टमैन
सबसे बेहतर है।
मेरा निवेदन है कि सम्बन्धित लोग मुझ अल्पज्ञ
की बातों पर ज्यादा नहीं थोड़ा सा ही विचार करें कुछ अनुचित कह हो तो क्षमा करें।
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