गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

अन्ना हजारे


अन्ना जैसे देश में, सौ दो सौ हो जायें।
सत्य मानिये भ्रष्टजन देश छोडकर जायें॥१॥
बूढ़े की हुँकार पर, जागा सारा देश।
भ्रष्ट व्यवस्था से घृणा, जन जन में आवेश॥२॥
अन्ना गाँधी से अधिक, मेरे लिये महान।
गाँधी गैरों से लड़े, वह अपने इन्सान॥३॥
अन्ना तुम युग युग जियो, रहो हमेशा स्वस्थ।
मार्ग दिखाओ लोक को, कभी न करना प्रस्थ॥४॥
लोकपाल हित आपने, किया हठी सन्घर्ष।
भारत का कण कण हुआ,पूर्ण हर्ष उत्कर्ष॥५॥
जन की ताकत चीज क्या किया आपने सिद्ध।
घबराये काँपे बहुत, राजनीति के गिद्ध॥६॥
बूढ़ी हड्डी आपकी, युवकों सा उत्साह।
भूखे रहकर आपने, दी लड़ने की राह॥७॥
गाँधी के हथियार को दिया आपने मान।
जँग लग रही थी वहाँ, रखी आपने शान॥८॥
पुनः आपकी कृपा से , गाँधी के सिद्धान्त।
प्रासंगिक लगने लगे, अब तक जो थे शान्त॥९॥

2 टिप्‍पणियां:

  1. अपने ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी का अर्थ का मतलब नहीं समझा।

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  2. क्षमा करें बन्धु मुझे याद नहीं रहा मैंने आपके ब्लॉग पर क्या टिप्पणी की अन्यथा अवश्य स्पष्ट करता।

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