शनिवार, 22 अक्टूबर 2011

नवीन संस्कृति


आज अपनी संस्कृति का पतन होता जा रहा,
हर तरफ पर संस्कृति का नशा छाता जा रहा।
है यही वह देश प्यारे विश्व का जो था गुरू।
अपनी  गरिमा का इसे अब तो पता तक न रहा।
माँ बाप के सम्मान सूचक शब्द भी अब खो गये।
माता बनी मम्मी पिता जी डैड कैसे हो गये।
आशीष पाते थे बड़ों के पैर छूकर के जहाँ।
टाटा, हैलो और हाय में हम आज कैसे खो गये।
हम आधुनिक बनने की खातिर क्य न करते फिर रहे।
अच्छे भले कपड़ों में भी पैबन्द कैसे जड़ रहे।
सोचा न था फैशन परस्ती ऐसे दिन दिखलायेगी।
रूमाल भर कपड़े में ही औरत पूरी ढक जायेगी।
नारी का आभूषण है लज्जा बात थी प्रचलित यहाँ।
पर फैशनों के दौर में हैं नारियाँ विचलित यहाँ।
सबसे अलग मैं ही दिखूँ ये होड़ इनमें लग रही।
अतएव लज्जा सो गयी निर्लज्ज्ता है जग रही।
                         अनंत राम मिश्र
                    ग्राम-औड़ेरी, तहसील-शाहाबाद
                      जिला-हरदोई (उत्तर प्रदेश)
                              भारत


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