शनिवार, 3 सितंबर 2022

गुलाब जल

पापा मम्मी का दुलार भरा हाथ शीश रहे,
आसमां में छेद करो छेद हो ही जाता है।
बीबी और बच्चों की रेड पड़ जाती है जब,
कालाधन सिर पर सफेद हो ही जाता है।
प्रेमिका प्रपंच में जो पड़ गए आप बन्धु,
तन का गुलाब जल स्वेद हो ही जाता है।
कली जो बसंत छोड़ दिन निपटाय रहीं,
बाबा कह जाती हैं तो खेद हो ही जाता है।

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार 4 सितम्बर, 2022 को     "चमन में घुट रही साँसें"   (चर्चा अंक-4542)  (चर्चा अंक-4525)
       
    पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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