बुधवार, 24 दिसंबर 2025

सृष्टि का विचार

विचार से है सृष्टि या कि सृष्टि का विचार है।
विचार ब्रह्म ने किया कि ब्रह्म ही विचार है।।
अपार प्रश्न हैं व प्रश्न भी कठिन कुठार हैं‌।
जुड़े हजार लोग तो जवाब दस हजार हैं।
फटा जो अणु असंख्य पिंड चल पड़े जहाॅं तहॉं।।
मुझे समझ न आ रहा कि पिंड थे वहॉं कहॉं।।
विशाल पिण्ड कोटि-कोटि मूर्त हो रहे सतत।
अमूर्त कण मनज लगे प्रमाणहीन बिन्दुवत।।
वहॉं पे कौन था कि जिसके कर चले प्रहार को।
प्रकट हुए अरूप से सरूप हो विहार को।।
युगों युगों चलें न पर पा सकेंगे छोर का।
न साॅंझ का पता चले न ज्ञान मिले भोर का।।
दबाव था वो कौन सा हटा कि पिण्ड उड़ चले।
उन्हें जहां जगह मिली इस दिशा में मुड़ चले।। 
उड़े अगर विचित्र क्या? विचित्र है रुके नहीं।
हवा करे बिना थके वो खेल से छके नहीं।।
कहाॅं है स्रोत शक्ति का वो कौन है महाबली।
प्रयास कौन कर रहा प्रकृति फिरे चली चली।।
लगा हुआ उसी अचिन्त्य खोज में सदा रहूॅं।
मिले ना हल न खेद कुछ अज्ञात से जुड़ा रहूॅं।।

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