बुधवार, 24 दिसंबर 2025

सृष्टि का विचार

विचार से है सृष्टि या कि सृष्टि का विचार है।
विचार ब्रह्म ने किया कि ब्रह्म ही विचार है।।
अपार प्रश्न हैं व प्रश्न भी कठिन कुठार हैं‌।
जुड़े हजार लोग तो जवाब दस हजार हैं।
फटा जो अणु असंख्य पिंड चल पड़े जहाॅं तहॉं।।
मुझे समझ न आ रहा कि पिंड थे वहॉं कहॉं।।
विशाल पिण्ड कोटि-कोटि मूर्त हो रहे सतत।
अमूर्त कण मनज लगे प्रमाणहीन बिन्दुवत।।
वहॉं पे कौन था कि जिसके कर चले प्रहार को।
प्रकट हुए अरूप से सरूप हो विहार को।।
युगों युगों चलें न पर पा सकेंगे छोर का।
न साॅंझ का पता चले न ज्ञान मिले भोर का।।
दबाव था वो कौन सा हटा कि पिण्ड उड़ चले।
उन्हें जहां जगह मिली इस दिशा में मुड़ चले।। 
उड़े अगर विचित्र क्या? विचित्र है रुके नहीं।
हवा करे बिना थके वो खेल से छके नहीं।।
कहाॅं है स्रोत शक्ति का वो कौन है महाबली।
प्रयास कौन कर रहा प्रकृति फिरे चली चली।।
लगा हुआ उसी अचिन्त्य खोज में सदा रहूॅं।
मिले ना हल न खेद कुछ अज्ञात से जुड़ा रहूॅं।।

बुधवार, 17 दिसंबर 2025

रखना

वो चाहेगा तुम्हें पिआसा रखना।
मत किसी से कोई आशा रखना।
मंच तो उसने सजा रक्खे हैं सब,
अपनी ओर से न तमाशा रखना।

मंगलवार, 16 दिसंबर 2025

जल बचाइए

फेसबुक पर एक बन्धु सुझाव दे रहे थे कि जाड़ा बहुत है जल बचाइए और संडे के संडे नहाइये तो मेरे मन में कुछ भाव उठे और फटाफट व्यक्त हो गये। आनंद लें।

संडे को नहाया तो भी खर्च होगा ज्यादा जल,
हो सके तो एक बार माह में नहाइये।
बोतल में पानी भर रख लो कबर्ड में,
हन्नू हन्नू कह कर शीष पे घुमाइये।
दिख जाये कोई अन्य भी जो नहाता हुआ,
खुद ही नहा लिये हैं मन में मनाइये।
जन्म जब हुआ था तो नहला दिया था नर्स ने,
एक इसी स्मृति से काम को चलाइये।

रविवार, 14 दिसंबर 2025

करतार

यों ही नहीं कहते उसे करतार हम।
हर ओर उसकी देखते सरकार हम।।
हमने लगाये पुष्प पादप श्रम किया,
हैं देखते उनपर खिली तलवार हम।।
जब भी लगा हर रास्ता अब बन्द है,
खुद हो गये हैं आप ही से पार हम।।
क्या कर्म था क्या फल मिला किसको पता,
हर हानि का उस पर रखेंगे भार हम।।
ज्यादा कभी तो कम कभी अनुमान से,
मजबूत भी तो फिर कभी लाचार हम।।

मंगलवार, 9 दिसंबर 2025

जड़ को भूल गया

या तो मैं ही उधर न गुजरा, जिधर टिका मधुमास रहा।
या फिर मेरे मन आंगन को, मधु बसंत ही भूल गया।।
यह संभव है निज कविता में, झूठा प्रेम उड़ेल दिया।
उर का कोई कोमल पन्ना, अनजाने में ठेल दिया।
सत्य यही है मुख मुस्काता, मैं मुस्काना भूल गया।।
रत्न रहे होंगे तलछट में, लेकिन मैं कंजूस रहा।
दान नहीं कर पाया बिल्कुल, मैं किंचित मायूस रहा।
दूर रह गया लेन देन से, जीवन रस को भूल गया।। 
अपने दुर्गुण आगे करके, जग को केवल दर्द दिया।
सम्बन्धों की गर्माहट को, अवसर पाकर सर्द किया।
शाखें पत्ते गिने फूल फल, लेकिन जड़ को भूल गया।।

गुरुवार, 4 दिसंबर 2025

रजगंध पियारी

कैमी का छाॅंड़ि पिहानी बसे हम छॉंड़ि पिहानी बसे हैं अयारी।
पात की भाॅंति उड़ाति फिरे हम धाइ गये जित धाई बयारी।
भावी की बात विधाता को ज्ञात है जाने कहॉं अब होइ तैयारी।
बालपने जेहि भूमि फिरे वही गॉंव-गली-रजगंध पियारी।।
कैमी व अयारी- हरदोई जनपद के गाॅंव
पिहानी - हरदोई जनपद का नगर

भगवानहु ऐहै

काहे को मान गुमान करौं यदि मान गयो अपमानहु जैहै।
आजु भई जो भली या बुरी जेहि गारी दयी जयगानहु गैहै।
शीश पे हाथ धरे करौ सोच न साॅंझि भई तौ विहानहु ह्वैहै।
द्वेष  तजौ   उर  नेह धरौ  उर  नेह   धरे भगवानहु ऐहै।

हमारीवाणी

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