रविवार, 10 सितंबर 2023

कुविचारों की धूल छंटा दे

21/02/2017

चाहे जो इल्जाम सटा दे।
लिस्ट से मेरा नाम हटा दे।
तेरी हर हाँ पर हाँ कर दूँ,
अपने वश की बात नहीं है।
झूठ पे अपना नख ना काटूँ,
सच पर मैं जो शीश कटा दे।
क्या है प्रगति मनुज से पशु में,
अपनी समझ नहीं आता है,
जंगल से शहरों तक पथ पर,
कुविचारों की धूल छंटा दे।
अपनी छत अपनी दीवारें,
करने में षडयन्त्र जुटी हैं।
मुझ पर जो विश्वास नहीं है,
तो प्राणों का भाव घटा दे।


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