शुक्रवार, 27 अगस्त 2021

जाति के बन्धन

जोड़ने का वायदा था तोड़ने में लग गया हूँ।
पागलों की भाँति गति है सोचते हैं जग गया हूँ।
जन्म लेकर ऋषिगणों के उच्च कुल में दीन -सा मैं,
हर जगह बनकर भिखारी श्रेष्ठता पर हग गया हूँ।।1।।
जाति के बंधन हटाये जायेंगे कुछ सब्र कर लो।
किन्तु निज पहचान का फिर क्या करोगे युक्ति कर लो।
पूर्वजों से स्वयं का रिश्ता बहुत पहले तजा है,
लाभ शासन से मिले जो छोड़ने की हृदय धर लो।।2।।




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