उइ कहिनि चलौ गंगा नहाइ, हम कहेन पापु नहिं कबहुँ कीन।
बस इतनी बात भई एक दिन, हम दुऔ परानी युद्ध कीन।।
वै पाहन कौ भगवान किये, जब कबहुँ भजन मा मस्त भये।
हम आँखि बन्द करि हिरदै मा, जगदीश्वर से बतकही कीन।।
परसादु चढ़ावै का विचारि, उइ मन्दिर अन्दर बैठि गईंं।
हम चारि बूँद पानी छिरकेन, औ ठौरइ पै परिकमा कीन।।
इन बातन ते गुस्सा हुइके, जो हाथें परा चलाई दिहिनि।
हम देवी का परसादु समझि, हँसि हँसि के तन पे सहा कीन।।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 07 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
धन्यवाद बहन
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