हमारे पड़ोस में भूधर नाम के एक बुजुर्ग कुछ दिन पूर्व गुजर गए। उनके जीवन को देखते हुए मेरे मस्तिष्क में कुछ विचार आये। जो एक कुण्डलिया के रूप में प्रस्तुत है। मैं उनके परिवार से क्षमा प्रार्थी हूँ कि अगर उनके परिवार में किसी की भावनाएं आहत होती हों। मेरा यह उद्देश्य बिल्कुल नहीं है। मेरी समझ से हममें से अधिकतर लोगों का जीवन ऐसा ही है और हममें से बहुत से लोग भूधर हैं। तो कुण्डलिया का आनन्द लें।
भूधर भू धरकर यहीं, चले गये भुव लोक।
भू धर कर परिवार में, बढ़ा गर्व गत शोक।
बढ़ा गर्व गत शोक, हृदय की कली खिल गयी।
क्षण-क्षण की बकवास, सोंच उर मुक्ति मिल गयी।
जिस कुटुम्ब के हेत, बहुत तकलीफें सहीं।
सहते गये दुत्कार, भूधर भू धर कर यहीं।।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-11-2020) को "धीरज से लो काम" (चर्चा अंक- 3889) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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हार्दिक आभार बड़े भाई देर से उत्तर के लिए क्षमा याचना
हटाएंसत्य कहा है ।
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