दिल्ली से जो दिल दहला देने वाला समाचार आया है कि अग्निकांड में 43 लोगों की मृत्यु हो गई है व दो दिन पीछे से जो देश के विभिन्न स्थानों से रेप व रेप पीड़िताओं की मृत्यु आदि के समाचार आ रहे हैं पढ़ सुनकर ऐसा लग रहा है जैसे हम अपने चारों ओर जलती हुई आग से घिरे हैं। तन-मन अशान्त है और दूर तक कोई इलाज नजर नहीं आता।
लापरवाही की एक सीमा होती है जब लापरवाही की पराकाष्ठा हो तो अपराध बन जाती है। ऐसे अपराध हमें चारों ओर से गिरफ्त में इस प्रकार कसे हुए हैं कि हम हिल भी नहीं पा रहे हैं।
ईश्वर भी लगता है जैसे निरुपाय हो गया है।
मेरा बच्चा पूछ रहा था आखिर इतनी तंग जगह में फैक्ट्री की अनुमति मिली कैसे तो जाहिर सी बात है भ्रष्टाचार। आप pwd के ऑफिस में जाइये तो वहाँ बिना किसी निरीक्षण के ही नेशनल बिल्डिंग कोड के सर्टिफिकेट मिल जाते हैं और इसी प्रकार अग्निशमन विभाग से अग्निरोधी व्यवस्था का प्रमाण पत्र। बस पैसे पकड़ाओ। आप कितने भी सही हों बिना चढ़ावा काम नहीं होता। फिर कोई क्यों ठीक ठाक व्यवस्था करे सुरक्षा की। होना तो यह चाहिए ऐसी दुर्घटनाओं के लिए सभी को दण्डित करना चाहिए। अनुमति देने वाले अधिकारियों व noc जारी करने वाले अधिकारियों सहित किसी को नहीं छोड़ा जाना चाहिए। होता है यह है ऐसे मामलों में सबसे कमजोर को बलि का बकरा बनाकर भेड़ियों को बचा लिया जाता है और सब कुछ सामान्य की तरह चलने लगता है जब तक कि फिर से कोई बड़ी दुर्घटना न हो जाए।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (10-12-2019) को "नारी का अपकर्ष" (चर्चा अंक-3545) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद बड़े भाई।
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