मैं भी बहुत
बड़ा कारण हूँ इस जग के जंजाल का,
लाठी लेकर
घूम रहा हूँ काम नहीं है बाल का।
बहुत जटिल
नक्शे देखे हैं, बहुत बड़ी तामिरें कीं,
सबके पीछे
झांक के देखा मसला रोटी दाल का।
अपने अपने
हाल की खातिर, हाल तुम्हारा पूछ रहे।
कोई पुरसाहाल
नहीं है वरना तेरे हाल का।
किसी विषय
का पक्ष करें या फिर विपक्ष में खड़े रहें,
उनका लक्ष्य
सिर्फ इतना है टुकड़ा तेरी थाल का।
साँप के जैसे
पलटी खाना अब तो सबकी आदत है,
किसका किसका
नाम लिखोगे हल ही नहीं सवाल का।
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