मंगलवार, 15 जनवरी 2019

टुकड़ा तेरी थाल का


मैं भी बहुत बड़ा कारण हूँ इस जग के जंजाल का,
लाठी लेकर घूम रहा हूँ काम नहीं है बाल का।
बहुत जटिल नक्शे देखे हैं, बहुत बड़ी तामिरें कीं,
सबके पीछे झांक के देखा मसला रोटी दाल का।
अपने अपने हाल की खातिर, हाल तुम्हारा पूछ रहे।
कोई पुरसाहाल नहीं है वरना तेरे हाल का।
किसी विषय का पक्ष करें या फिर विपक्ष में खड़े रहें,
उनका लक्ष्य सिर्फ इतना है टुकड़ा तेरी थाल का।
साँप के जैसे पलटी खाना अब तो सबकी आदत है,
किसका किसका नाम लिखोगे हल ही नहीं सवाल का।
 



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शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

चुनावी समर

 इस चुनावी समर का हथियार नया है।
खत्म करना था मगर विस्तार किया है।
जिन्न आरक्षण का एक दिन जाएगा निगल,
फिलहाल इसने सबपे जादू झार दिया है।
अब लगा सवर्ण को भी तुष्ट होना चाहिए।
न्याय की सद्भावना को पुष्ट होना चाहिए।
घूम फिर कर हम वहीं आते हैं बार बार,
सँख्यानुसार पदों को संतुष्ट होना चाहिए।



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