भागने की कला में प्रवीण
पैदाइशी हूँ,
जब चाहे मुझे आजमाके देख
लीजिये|
छोड़ पाठशाला कई बार भाग आया
घर,
टीचरों से मेरे स्वर्ग जाके
पूछ लीजिये|
छिपता था ऐसी जगह ढूँढ़ हारते
थे मित्र,
कहते थे इसे कभी खेल में न
लीजिये|
अरे! बैंक वाले मित्र हो
जाएगा विश्वास,
एक बार कर्ज देके मुझे जाँच
लीजिये|
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