यह नाटक स्कूल के बच्चों द्वारा माँ भारती विद्या मन्दिर अयारी में 26 जनवरी २०१६ को अभिनीत किया गया था| मैं समझता हूँ दूसरे विद्यालयों के लिए भी उपयोगी होगा|
[1]
(एक
बालक मन्च पर एक वृक्ष के वेश में खड़ा है और एक गीत गुनगुना रहा है। कुछ बच्चे इसके चारों ओर नाच रहे हैं। एक बच्चा इसके नीचे लेटकर विश्राम कर रहा है।)
वृक्ष:- मैं हूँ वृक्ष धरा का भूषण,
मुझसे है धरती
पर जीवन।
फ़ल देता हूँ
मीठे मीठे,
छाया देता
शीतल शीतल।
मेरा अंग अंग
औषधि है,
मर जाऊँ तो
देता ईंधन।
बच्चे जब मेरे
चारों ओर खेलते हैं, मैं खुश होता हूँ।
चिड़िया जब
मुझपर घोंसला बनाती है, मैं खुश होता हूँ।
मेरी छाया में
करता है विश्राम पथिक मैं खुश होता हूँ।
[तभी एक चिड़िया
वहाँ आती है।]
चिड़िया:-
प्यारे बच्चों मैं हूँ चिड़िया चीं चीं चीं चीं चीं चीं।
मैं घोंसला
बनाती हूँ तिनका तिनका लाती हूँ।
पेंड़ हमारा
आश्रयदाता मैं कितना सुख पाती हूँ।
जाती हूँ अब
जाती हूँ तिनका चुनकर लाती हूँ।
फ़िर घोंसला
बनाती हूँ मैं कितना सुख पाती हूँ।
चीं चीं चीं
चीं चीं चीं।
[तभी एक बालक मंच
के एक ओर कुछ देखते हुए]
एक बालक:-
देखो देखो कौन आ रहा है।
दूसरा बालक:-
ऐं हाथ में कुल्हाड़ी है। आरा है। भागो भागो।
वृक्ष:- अरे!
मैं कहाँ जाऊँ।
[दोनों बालक
भागते हैं, मंच पर लकड़हारा आता है]
लकड़हारा:-
सारा जंगल काट लिया है। यही पेंड़ बाकी है। बड़ा हृष्ट-पुष्ट है। इसमें बहुत लकड़ी
निकलेगी। चलो इसे काटता हूँ।
[लकड़हारा
झुककर वृक्ष को काटता है। वृक्ष चिल्लाता है]
बचाओ। बचाओ।
बचाओ। बचाओ।
[परदा गिरता है]
[2]
[बच्चे मंच पर
आते हैं]
एक बच्चा:- ऐं
पेंड़ कहाँ गया। देखो ठूँठ यहाँ हैं।
दूसरा बच्चा:-
हाय! अब हम सब कहाँ खेलेंगे?
तीसरा बच्चा:-
और मैं आराम कहाँ करूँगा।
चिड़िया:- मैं
हूँ चिड़िया चीं चीं चीं चीं चीं चीं। हाय मैं अपना घोंसला कहाँ बनाऊँगी? कहाँ जाऊंगी? जब पेड़ ही नहीं होंगे तो मैं जिंदा
कैसे रहूँगी? मुझे मरना होगा। हे! भगवान मुझे अपने पास बुला
लो।
[चिड़िया मरने
का नाटक करती है।]
[एक बच्चा
चिड़िया को छूकर देखता है।]
बच्चा:- अभी
साँस बाकी है। क्योंकि आस बाकी है।
हम पेड़ों को
लगायेंगे, जीवन को बचायेंगे।
आओ पेंड़ लगाएं
जीवन में खुशहाली लायें।
बच्चे पेड़
लगाते हैं। चिड़िया भी उठकर गाती है।
वृक्ष धरा के
भूषण, देते जन को जीवन।
वृक्ष धरा के
भूषण, देते जन को जीवन।
वृक्ष धरा के
भूषण, देते जन को जीवन।
वृक्ष धरा के
भूषण, देते जन को जीवन।
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