कितना सारा जल बिखराया,
बैंगन गीला नहीं हुआ।
बहुत अधिक हल्दी निपटाई,
चूना पीला नहीं हुआ।
कुतिया की दुम सीधी होगी,
बीड़ा मैंने उठा लिया।
रोयाॅं रोयाॅं नोच लिया है,
बन्धन ढीला नहीं हुआ।
अर्द्धशतक तो बिता दिया है,
धरती सिर पर उठा सकूॅं।
रक्त रक्त ही बना रहा है,
नभ सा नीला नहीं हुआ।
चाहे जितनी राय मुझे दो,
जड़वत् जीता रहा सदा,
घोल-घाल कर तला तवे पर,
पत्थर चीला* नहीं हुआ।
(चीला - उत्तर प्रदेश में बेसन का बना कागज सा पतला व्यंजन)