आज के आज मत सब मजा लीजिए,
कुछ को कल की भी खातिर बचा लीजिए।
एड़ियों में महावर लगा दूॅंगा कल,
आज आकर के मेंहदी रचा लीजिए।
कान की बालियॉं चूमतीं गालों को,
हैं जलातीं मुझे ये हटा लीजिए।
कब्र में पैर लटका के बैठे हो जो,
उर में मोहन की मूरत बसा लीजिए।
चाहते हाथ में हों अमृत के घड़े,
नफरतों से हृदय को हटा लीजिए।
है तुम्हारा भी स्वागत चले आइए,
हाथ में किन्तु सच की ध्वजा लीजिए।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार अगस्त 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद
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