ना पिय पाये न पायी पाती।
सावन माह जल रही छाती।
खेत खेत बिखरी हरियाली,
हृदय मरुस्थल बिछुड़न व्याली।।1।।
तन तृण विरस ज्वलन हित तत्पर।
प्राण प्रयाण चाहते सत्वर।
दोनों अपनी गति पा जाते,
प्रिय दर्शन को ठहरे हठकर।।2।।
दुरभिसंधि है अनिल अनल की।
दिखे न पीड़ा उर में छलकी।
नयन नीर का कोष शून्य है,
पलकें चाह करें एक पल की।।3।।