विषय ---फागुन
विधा ----छंद - कुण्डलिया
1. फागुन आया देखकर आम उठा बौराय।
पिया बसे परदेश में, कोयल रही बुलाय।
कोयल रही बुलाय, धरा है धानी धानी।
मादकता सिर चढ़ी कर रही पानी पानी।
समझ न आवें मित्र! ससुर बहुओं के लच्छन।
मन को दे भरमाय मदन का भाई फागुन।।
2- फागुन चढ़ा मुंडेर पर, घोट रहा है भाँग।
देवर जी का लग रहा, नम्बर हो गया राँग।
नम्बर हो गया राँग, मनाते घूमें भाभी।
हर ताले की पास रखें जो अपने चाभी।
चाहत गोरा होंय माँगते क्रीमें साबुन।
भाभीजी की बहन भा गई अबकी फागुन।।