लोग पूछते हैं यार तू कविता क्यों लिखता है? तो उत्तर देना लाजिमी है। बन्धु कविता लिखना सरल है इसलिए कविता लिखता हूँ। एक दो चार छः पंक्तियाँ या जितनी मर्जी हो लिख दो। तुक-बेतुक, हेतु-अहेतुक, गद्य-पद्य-गदापद्य सब कविता में समाहित हो जाता है। कविता के नाम पर लोकलाज छोड़ लोकभाषा के शब्दों को भी जगह-बेजगह प्रयोग कर सकते हैं। शब्द विकलांग, भाषा विकलांग और शैली भी विकलांग फिर भी वाह वाह अति सुन्दर लोग पढ़े वा बिना पढ़े कमेंट बॉक्स में ठोक ही देते हैं। विषय ढूँढ़ने का झंझट नहीं। उर्दू के अल्फाज हैं न गजल झोंक दो, शेर दौड़ा दो। तमाम पर्वत नदी आकाश है न आधी -अधूरी पंक्तियों में झोंक दो। पाठक अर्थ निकालने के लिए स्वतंत्र है और हम अपने नाम के आगे पीछे कवि, महाकवि और व्यंग्यकार आदि न जाने क्या चेंपने के लिए स्वतंत्र।
अब गद्य कठिन है, शब्दों को तोड़मरोड़कर लिखने की सम्भावना शून्य, विषय-चयन और उसकी पूर्ण समझ का झमेला अलग। पता नहीं कौन ज्ञान का पिटारा खोल बैठे। लोकभाषा के प्रयोग की स्वतंत्रता भी बाधित। स्वयं के नाम के आगे पीछे जोड़ें क्या, लेखक न कथाकार न शिल्पी। कुछ भी तो खुद को समझ नहीं पा रहा। इसलिए हे बन्धु स्वान्तः सुखाय रघुनाथगाथा, मुझे कुछ ज्यादा नहीं आता।
कुछ तो लोग कहेंगे।
जवाब देंहटाएंलोगों का काम है कहना।
छोङो बेकार की बातों को!
हटाएंजारी रखो लिखना!
हार्दिक आभार बड़े भाई
हटाएंहा हा हा ! ये भी खूब रही! लज़्ज़तदार !
जवाब देंहटाएंये भी एक पहलू है !
अभिव्यक्ति की आज़ादी है !
कहीं मनमानी है!
तो कहीं झरने का मतवाला पानी है ।
सच कहा।
हटाएंअंदाज पसंद आया ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंरचना का लिंक शेयर करने के लिए हार्दिक आभार बन्धु
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