प्रीति का व्याकरण बाँचने के लिए।
हमसे तुम मिल लिये, तुमसे हम मिल लिये।।
दीप तुमने छुए, वे सभी जल गए।
रोप तुमने दिए, पुष्प सब खिल गए।
तुमने देखा जिन्हें, वे भँवर मिट गए।
बन्ध तन-मन के सब, एक क्षण खुल गए।
दस दिशायें जपें, प्रेम की रागिनी,
राग-अन्तःकरण, जाँचने के लिए।
हमसे तुम मिल लिये, तुमसे हम मिल लिये।।
मेल होना प्रिये, नव सृजन की सुबह।
अन्यथा पन्थ में, बस कलह ही कलह।
प्रेम के सूत्र में, ग्रन्थियों की जगह,
पुष्प जैसे किए, कंटकों से सुलह।
मैं गगन हो गया, तुम सितारा बने,
एक संसार को साधने के लिए।।
हमसे तुम मिल लिए, तुमसे हम मिल लिए।।
वीथिका-वीथिका, गीत-गाये गए,
कथ्य में भावना से नहाये हुए,
मंच पर प्रेम के स्वांग होते रहे,
लोभ लालित्य में जन लुभाये गए।
सब भ्रमों से परे नव-सृजन में रमे,
तम घने में सतत जागने के लिए।।
हमसे तुम मिल लिए, तुमसे हम मिल लिए।।
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सुन्दर अभिव्यक्ति सर मेरा ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है https://bikhareakshar.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंराजेन्द्र सिंह जी सादर अभिवादन।
हटाएंआभार बड़े भाई
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