29/5/1993
किसी अंग्रेजी कविता की स्मृति आधारित भावाभिव्यक्ति--
रसमय मित्र
कितनी रसमय? मित्र ! मनोहर छवि है तेरी|
बस तू आशा किरण अन्य सब छाँव घनेरी|
शाम घिरे ही लौट गेह में तुम आते हो|
बड़े प्रेम से निज बच्चों संग कुछ गाते हो|
निश्चय ही यह प्रेम गीत है गाओ प्यारे|
कानों को अच्छा लगता है मित्र हमारे|
इतनी मिठास यह दर्द कहाँ से लाते हो|
मुझको भी दो जिस मीटर में तुम गाते हो|
मुझको भी अपने भावों का सहभागी कर लो|
इसी नीड़ में फिर चाहे इहलीला कर लो|
सिर्फ आखिरी साँस तुम्हारी मृदु लय टूटे|
सुनता रहूँ निरंतर मैं जब तक तन छूटे|
काश तुम्हारा गीत सभी जग वाले सुनते|
भौतिकता से दूर तुम्हारे रंग में रंगते|
@विमल कुमार शुक्ल'विमल'
किसी अंग्रेजी कविता की स्मृति आधारित भावाभिव्यक्ति--