मेरे एक मित्र ने फेसबुक पर अपनी कविता में कोठा शब्द का प्रयोग किया तो मैं भी लिख गया। कुण्डलिया का आनन्द लें।
घर घर कोठे खुल गये, आजादी के बाद।
फैशन फिल्मों से लिया, अपने सिर पर लाद।
अपने सिर पर लाद, लीद बेशर्मी की ली।
जिसको भी दो टोक, ऑंखें हों नीली पीली।
कोठे की कर बात, करो मत चोट हृदय पर।
बेशर्मी का नृत्य, दिख रहा मित्रों घर घर।।
विमल ९१९८९०७८७१