शनिवार, 28 सितंबर 2024

बैंगन गीला नहीं हुआ

कितना सारा जल बिखराया,
बैंगन गीला नहीं हुआ।
बहुत अधिक हल्दी निपटाई,
चूना पीला नहीं हुआ।
कुतिया की दुम सीधी होगी,
बीड़ा मैंने उठा लिया।
रोयाॅं रोयाॅं नोच लिया है,
बन्धन ढीला नहीं हुआ।
अर्द्धशतक तो बिता दिया है,
धरती सिर पर उठा सकूॅं।
रक्त रक्त ही बना रहा है,
नभ सा नीला नहीं हुआ।
चाहे जितनी राय मुझे दो,
जड़वत् जीता रहा सदा,
घोल-घाल कर तला तवे पर,
पत्थर चीला* नहीं हुआ।
(चीला - उत्तर प्रदेश में बेसन का बना कागज सा पतला व्यंजन)

शनिवार, 14 सितंबर 2024

मैडम रीटा

मैडम रीटा कर गयीं, हिन्दी को कंगाल।
ऋता शब्द का अर्थ तो, है जी का जंजाल।
है जी का जंजाल, कहें सीता को शीता।
अब ठर्रे को छोड़, आदमी बीयर पीता।
राम जुहारी छोड़, कर रहा टाटा टीटा।
हिन्दी दिन का ढोंग, करो मत मैडम रीटा।।

रविवार, 1 सितंबर 2024

चौथी बार खा ही लेंगे

कमनीय काया की प्रशंसा किये बिना बढ़े,
दुष्ट ध्यान भी न देता कह के चिढ़ायेंगी।
जिनको लड़ाने नैन नैन वो लड़ायेंगी ही,
आपसे न टाॅंका भिड़े बाप से भिड़ायेंगी।
कहॉं तक संयम की ध्वजा को उठाया जाये,
सावधान हो के राष्ट्रगान नहीं गायेंगी।
एक बार दो बार तीन बार छोड़ देंगे,
चौथी बार खा ही लेंगे खीर जो बढ़ायेंगी।।

सोमवार, 19 अगस्त 2024

मजा लीजिये

आज के आज मत सब मजा लीजिए,
कुछ को कल की भी खातिर बचा लीजिए।
एड़ियों में महावर लगा दूॅंगा कल,
आज आकर के मेंहदी रचा लीजिए।
कान की बालियॉं चूमतीं गालों को,
हैं जलातीं मुझे ये हटा लीजिए।
कब्र में पैर लटका के बैठे हो जो,
उर में मोहन की मूरत बसा लीजिए।
चाहते हाथ में हों अमृत के घड़े,
नफरतों से हृदय को हटा लीजिए।
है तुम्हारा भी स्वागत चले आइए,
हाथ में किन्तु सच की ध्वजा लीजिए।

हमारीवाणी

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