उर दिया है नेह घृत है,
और जीवन वर्तिका।
दीप क्षण क्षण जल रहा है,
विश्व में सत को समर्पित।
पथ सुचिंतित पग सुचिंतित,
प्रेय भी है श्रेय भी।
मनुज भी मैं मनज भी मैं,
प्यास मैं ही मैं पयस्।
पथ पथी गन्तव्य गति सब,
हो गये हैं एक रॅंग।
और मैं संग में तुम्हारे,
दिग्विजेता समर-ध्वज।