जो मूडे मा आवा तौ मजमा लगायेन।
हमहु खाली खपड़ी की खुजली मिटायेन।।
मदन्नू, महतिया, महेन्दर, मुरारी,
सबै गाॅंठै बातें हवा की सवारी।
न गन्ना न गेंहूॅं न मोहरा दुआरी,
न गैया न गोरू बनाई बिगारी।
मगर इनके मुॅंह ज्ञान अद्भुत पिटारा,
बिखेरै की खातिर इनका बुलायेन।।
हमहु खाली खपड़ी की खुजली मिटायेन।।
रहै मद्दा ठगउरि न जाने थी पब्लिक,
रहै खाइ का कम खुशी पै चतुर्दिक।
मदन्नू बताइनि कमर मा गई चिक,
जो उल्टा था जन्मा लगाएसि जरा किक।
रहै बात अद्भुत समुझि माॅं न आवै,
बिना डाॅक्टर औ' दवा दौड़ि पायेन।।
हमहु खाली खपड़ी की खुजली मिटायेन।।
महतिया बनाएनि महत्तम जतन ते,
जिला राजधानी सबै नापि तन ते।
न लेना न देना बड़े अफसर न ते।
बड़े बरगदन का उखारिनि जरन ते।
जो पूछेन सचाई बताइनि महतिया,
कि थोड़ा जलेन हम औ ज्यादा जलायेन।।
हमहु खाली खपड़ी की खुजली मिटायेन।।
महेन्दर न समझैं पढ़ाई-लिखाई,
कहैं लरिकिनी सीखि जातीं ढिठाई।
जै कॉलेज के लरिका जुगाड़ैं भिड़ाई,
तकैं नौकरी कामु अपनो बिहाई।
निजी सभ्यता संस्कृति को भुलाये,
जुआ, दारू-सिगरेट में सबकुछ उड़ायेन।।
हमहु खाली खपड़ी की खुजली मिटायेन।।
मुरारी बड़ी चिन्त करते सबन की,
दिशा मोड़ सकते गगन के पवन की।
रखें जानकारी खगन के परन की,
इन्हैं युक्ति आवै समस्या हरन की।
मगर सिलि न पावैं अपनी फटी का,
पड़ोसी के कुत्ता से खुद का कटायेन।।
हमहु खाली खपड़ी की खुजली मिटायेन।।
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