अगस्त ९८
यूँ ही नहीं हो जायेगा,
मेरे सफ़र का खात्मा।
मैं कोई चिराग नहीं जो बुझा तो अँधेरा हो जायेगा।
मैं कोई तूफान नहीं जो अपने साथ सब कुछ समेट ले जायेगा।
मैं बाढ़ नहीं जो अपने साथ महाविनाश लायेगा।
मैं शूल नहीं जो चुभेगा और याद आयेगा।
मैं फूल भी नहीं हूँ जू डाल से मिट्टी में गिरेगा,
और मिट जायेगा।
मैं आग भी नहीं हूँ, जो फैल गयी तो सब राख में बदल जायेगा।
मैं मोम भी नहीं हूँ, जो आँच पाकर पिघल जायेगा।
मैं वो खुशबू हूँ जो चारों तरफ फैल जायेगी, नासिका के रास्ते मस्तिष्क में ठहर जायेगी।
जब कभी याद आयेगी तो बहुत याद आयेगी।
यूँ ही नहीं हो जायेगा,
मेरे सफ़र का खात्मा।
मैं वो नहीं जो मंजिल पाकर ठहर जायेगा।
मैं वो हूँ जो बहुत आगे बहुत आगे बहुत आगे जायेगा।
कृपया पोस्ट पर कमेन्ट करके अवश्य प्रोत्साहित करें|
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 मई 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर धन्यवाद बहन
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-05-2023) को "सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य" (चर्चा अंक 4659) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर धन्यवाद आदरणीय बड़े भाई प्रणाम
हटाएंजीवन संदर्भ पर प्रेरक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसादर आभार बहन
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बन्धु
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