लोग कहते हैं कि यहाँ तट पर जो किला है उसे अकबर ने बनवाया। मुझे नहीं लगता। क्योंकि अकबर एक भी दिन इस किले में रुका होता तो इस किले में मस्जिद जरूर होती आगरा, दिल्ली और फतेहपुर सीकरी की तरह। अगर हो तो पाठक अवश्य अवगत करायें। उल्टे इस किले में है पातालपुर मंदिर, अक्षय वट व सरस्वती कूप जो हिन्दू धर्म से सम्बन्धित हैं। अकबर से इस दरियादिली की उम्मीद मुझे तो नहीं है। सत्य के अनुसंधान की आवश्यकता है।
जो भी हो अगर आप वैराग्य चाहते हैं तो हरिद्वार या उसके उत्तर जाइये, भक्ति की कामना है तो अयोध्या या मथुरा जाइये, ज्ञान की खोज में हैं तो काशी है। किन्तु निस्वार्थ भाव से चाहे प्रयागराज कहें, इलाहावास कहें या इलाहाबाद कहें। यहाँ संगम में डुबकी लगाएं और ज्ञान, भक्ति तथा वैराग्य तीनों को एक साथ पाएं।