रविवार, 2 जुलाई 2017

पूछते हो?

मेरे दर्दे दिल की दवा पूछते हो।
बड़े नासमझ हो ये क्या पूछते हो?
जवानी बदन से विदा माँग बैठी,
मिटी चाहतों की रज़ा पूछते हो?
गुलाबी कपोलों पे छाई निलाई।
चमन में बहारों से फिर क्या मिलाई?
नमक मिर्च घावों पे छिड़को न साजन,
समुन्दर से उसकी तृषा पूछते हो?
अभी तुम जवां हो तुम्हें सब छजे है,
तुम्हारी वजह से ही महफ़िल सजे है,
जहाँ रुक गए तुम है जन्नत वहीं पर,
क्यों  बहती हवा का पता पूछते हो।
कभी इस डगर में भी खनकी थी पायल,
अभी तक हरे जख़्म औ' दिल है घायल,
दवा कर रहा हूँ तो बढ़ती मरज है,
जली लाश की भी शिफ़ा पूछते हो।

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