मुझसे न कह
इस वक्त अब कहीं और जाने के लिए।
कंधा किसी का
मिल गया सिर को टिकाने के लिए।
वो लोग पत्थर हाथ में लेकर मिलेंगे हर जगह,
घर में नहीं है पेट भर कुछ भी पकाने के लिए।।
सब लोग शादी में कहाँ चेहरा दिखाने आएँगे?
कोई तो हमको चाहिए घर भी बचाने के लिए।।
सब देखसुन खा
पी के जब ये जिन्दगी हो घाट पर,
तब आंत में
बस चाहिए तन मन झुलाने के लिए।।
यूँ तो सभी
के हाथ दिखतीं एक जैसी लाइनें।
फिर भी तो
अन्तर खोजिये मन को मनाने के लिए।।
नववस्त्र भूषण भूषिता निज मन मुकुर की अप्सरा।
सबको कहाँ मिल
पाएगी उर से लगाने के लिए।।
जब पल्लवों ने साथ छोड़ा टहनियाँ नीरस हुईं।
कोई तो आ
ही जाएगा आरा चलाने के लिए।।
व्याकुल नहीं मन
में 'विमल' है देखकर जग का चरित।
सारे मशाले चाहिए भोजन बनाने के लिए।।
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